Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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विषय सूची
I पूर्वपीठिका - राजनीतिक पीठिका २-५; सामाजिक पीठिका ५- ६; धार्मिक स्थिति ६- ९; विविध कलाओं की स्थिति - स्थापत्य ९; चित्रकला ९-१०, संगीत १० - ११, साहित्यिक अवस्था ११-१६, भाषा १६- १९, रस २० - २२, काव्यरूप २२-२४ ।
II १८वीं शती के साहित्यकार और उनका साहित्य
अचलकीर्ति २५-२६, अजयराज पाटनी २६-२९, अजीतचंद २९-३०, अभयनंद सूरि ३०, अभयसोम ३१-३३, अमरकवि ३४, अमरचंद ३४-३५, अमरपाल ३५, अमरविजय या अमर गणि ३५-३७, अमरविजय II ३७, अमरसागर ३८, अमीचंद ३९, अमृतगणि ३९, अमृतसागर ४०, अमृतसागर II ४०, आणंदनिधान ४१, आणंद मुनि ४१-४२, आणंदरुचि ४२-४३, आनंदवर्द्धन ४३-४५, आनंद सूरि ४५, आनंदघन ४५, आसकरण ४५-४६, इन्द्र सौभाग्य ४६, उत्तमचंद ४६-४७, उत्तमसागर ४७-४८, उदयचंद मथेन ४८-४९, उदयचंद ४९-५०, उदयरत्न ५०, उदयरत्न II ५०-५८, उदैराम ५८, उदयविजय ५८ - ६१, उदयसमुद्र ६१-६२, उदयसागर सूरि ६२, उदयसिंह ६३, उदयसूरि ६३, ऋषभदास ६३-६४, ऋषभसागर ६४-६५, ऋषिदीप ६५, ऋषिविजय ६६, ऋद्धिहर्ष ६६, कनककीर्ति ६७, कनककुशल ६७-६८, कनकनिधान ६८, कनकमूर्ति ६९, कनकविजय ६९, कनकविलास ६९-७०, कनकसिंह ७०, कमलहर्ष ७०-७२, कर्मचंद / कर्मसिंह ७२-७३, कर्मसिंह II ७३-७४, कहानजी गणि ७४-७५, कानो ७५, कांतिविजय ७५-७६, कांतिविजय II ७७-७९, कांतिविमल ७९, कृपाविजय ८०, कृपाराम ८०, किशनदास, कीसन अथवा कृष्णदास मुनि ८०-८२, किशनसिंह ८२ - ८६, कीर्ति - विजय ८६, कीर्तिसागर सूरि शिष्य ८६-८७, कीर्तिसुंदर या कान्हजी ८७-८९, कुशल ८९-९०, कुँवरकुशल ९०-९१, कुशलधीर ९१-९३, कुशललाभ ( वाचक ) ९३-९४, कुशलविजय ९४-९५, कुशलसागर अथवा केशवदास ९५-९६, केशवऋषि (श्रीधर ९६-९७, कुशलोजी ९८, केसर ९८, केसरकुशल ९९-१००, केसरकुशल II १००, केशरविमल १०१-१०२, क्षमाप्रमोद १०२-१०३, क्षमासागर १०३,
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