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( १० ) (४) “पहले उलुगखां (४) डा० गुप्त का यह अर्थ हमारे विचार से ने इनसे पांच लब्धियां अस्पस्ट है और अशुद्ध भी। लब्धि का पारिमांगी थीं, किन्तु इन्होंने भाषिक अर्थ एक ज्ञान विशेष है जो इस प्रसंग में उसे आधी लब्धि भी नहीं उपयुक्त नहीं है, यदि 'लब्धि' को हम प्राप्ति' के अर्थ दी, फिर भी बादशाह के में लें तो आधीलब्धि और पांच लब्धिका अर्थ समयहाँ इनका मान था, झाने की आवश्यकता है। हमीरायण के उद्धरण इसलिए ये उलुगखां की ये हैं :सेना में बने हुए थे।"
अलुखान जि मंगियउ, अम्ड तीरइ पंचाध । घणा दिवस म्हे ऊलग्या, जेउ न दीधउ आध ॥४०॥ अम्हनइ मान हुनउ एतलउ, घरि बैठा लहता कणहलउ । पातिसाह नइ करता सलाम, कटकि उलगता
अलुखान ॥४५॥ इन पदों का वास्तविक अर्थ मुसलमानी इतिहासों को देखने से ज्ञात होता है जिनके अवतरण हमने आगे उद्धृत किए हैं। इस्लीम कानून के अनुसार लूट का कुछ भाग सुल्तान का और कुछ सैनिक का होता है। उलूगखां ने गुजरात से आते समय इस राज्य मार्ग को, जो यहाँ 'पंचाध' (पश्चार्ध ) के रूप में प्रस्तुत है बलात् सिपाहियों से वसूल किया था। मुहम्मद शाह और उसके साथी 'अर्ध' मी देने के लिए तैयार न थे, क्योंकि उन्होंने बहुत दिन तक सेवा की थी। वे उलुगखां के दुर्व्यवहार से असंतुष्ट थे।
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