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'मल और खेम के कवित्तों में तो जाजा का इतना महत्त्व
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कि हम्मीर मुहम्मदशाह से कहता है कि जब तक रणथंभोर का गढ़, नाजा बड़गूजर और उसका बन्धु वीरम रहेंगे, तब तक वह उसको त्याग न करेगा। खेम के ११ वें कवित्त में वह 'वड राउत' है, और ऐसा ही निर्देश सम्भवतः मल्ल के त्रुटित कवित्त में भी रहा होगा ।
पुरुष परीक्षा में जौहर का मी वर्णन है । किन्तु कथा इतनी संक्षिप्त है कि उसमें हम्मीर विषयक बहुत-सी बातें छुट गई हैं। लेखक का -लक्ष्य केवल हम्मीर की दयावीरता सिद्ध करना था। इसके लिए जितनी सामग्री उसने प्रयुक्त की है वह पर्याप्त है ।
इससे अग्रिम कृति हम्मीर हठाले के कवित्त हैं जिनकी मूँधड़ा राजरूप ने संवत् १७९८ में देशनोक में नकल की । कर्ता “ कविमल' (कवित्त ३,६) या 'कवि माल' ( कवित्त ५) है और इस छोटी सी २१ कवित्तों की कृति में वीर रस की अच्छी परिपुष्टि हुई है। पहले कवित्त में 'महिमा मुगल' शरण की प्रार्थना करता है । जाजा और वीरम के महत्त्व को प्रदर्शित करते हुए द्वितीय कवित्त में हम्मीर की उक्ति हम अभी दे चुके हैं। तीसरे कवित्त में बादशाह की ओर से राजकुमारी के सुल्तान से विवाह, धारू वारू नर्तकियों के समर्पण, और हाथी, घोड़ों और द्रव्य आदि की मांग है। चौथे कवित्त में हम्मीर का दर्पपूर्ण उत्तर है। उसकी मांग अल्लाउद्दीन से भी बढ़कर है । वह गजनी माँगता है, उसके भाई अलीखान ( उलूग्रखां ) से घास कटवाना चाहता है, उससे 'मरहठी नारी' माँगता है, और यह भी चाहता है कि बादशाह अनेक अन्य बादशाहों के साथ आकर उसकी सेवा करे । पाँचवें कवित्त में अलाउद्दीन का दूत
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