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'भाण्डउ' व्यास का कथन ठीक ही है कि इन्हीं आदशी का प्रतीक होने के कारण हम्मीर का नाम सूर्य, और चन्द्र की तरह अविचल है । अब तक भारतीय जनता के हृदय में इन आदर्शों का मान है वह हम्मीर के चरित का गान करती रहेगी। और हम्मीर का यशः शरीर अमर रहेगा । पढ़िये नयचन्द की यह उक्ति :
लोको मूढतया प्रजल्पतुतमां यच्चाहमानः प्रभुः .. " श्री हम्मीर-नरेश्वरः स्वरमगाद् विश्वैक साधारणः । तत्त्वज्ञत्वमुपेत्य किञ्चन वयं ब्रू मस्तमां स क्षितौ।
जीवन्नेव विलोक्यते प्रतिपदं तैस्तैर्निजैविक्रमै : ॥ १४-१५ ॥ हम्मीरायण की भूमिका विस्तृत हो गई है, इसमें इतिहास सम्बन्धी उद्धरणादि वह सामग्री देने का प्रयत्न किया है जिससे पाठक स्वयं हम्मीर के चरित्र को ग्रथित कर उसके सत्यासत्य पक्ष की जांच कर सके। इसमें कई अर्थों के विवेचन और स्पष्टीकरण में श्री भंवरलालजी के सुझावों के लिये मैं अत्यन्त अनुगृहीत हूं।
नवीन वसन्त... ई.४।१ कृष्णनगर
दिल्ली-३१
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दशरथ शर्मा
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