Book Title: Hammirayan
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 170
________________ हम्मीरायण ॥ चौपई ।। राज कहइ बारहटा बली, कीरति-लाछि मांहि कुण भली ; लाछइ गरथ घणउ आविसइ, कीरति देसि विदेसइ हुस्यइ ; १४८ 'मोल्हउ' कहइ मोकल्यउ सुरताणि, कहइ सु सुणइ हमीरदे राण; 'देवलदे' कुंवरी परणावि, धारू' 'वारू' साथि अलावि ; १४६ हाथी घण बे मागइ मीर, तुम्हनइ निहाल करइ हमीर ; अधिका दे 'मांडव' 'ऊजेणि', सवालाख संभरि तउ केड़ि ; १५० ॥दोहा॥ च्यारि बोल आपी करी, भोगवि लाछि अणंत ; 'मोल्ह' कहइ राजा निसुणि, कीरति दुहेली हुंति ; १५१ 'मोल्हउ' कहइबिसहर करिसि, जइ इन नामिसि नाक ; सरणाई आपिसि नहीं, कीरति होसी नाक ; १५२ कीरति मोल्हा ! वरिजि मई, लाछी तुं ले जाह ; डाभ अनि जे ऊपड़इ, ते न आप पतिसाह ; १५३ जइ हारउ तउ हरि सरणि, जइ जीपउं तउ डाउ; राउ कहइ बारहट ! निसुणि, बिहुं परि मोनई लाह ; १५४ ॥ चउपई। घणइ महति भाट वउलावियउ, घरनउ भाट साथिई मोकल्यउ ; मोल्हि जइ तिहि दीधी द्वाहि, घणउ मान दीधउ पतिसाहि ; १५५ २४३. तइ १४६ बोजी, - अरु, वरसि, १४७ मंड्यउ सुरताण, हमीरदे, तीमानि स, जयरिन । जइइन नाकि १५५ वउलाविवउ, साथि, नाल्हि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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