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द्वारा और न सेवा द्वारा उसे प्रसन्न किया है। तुमने बादशाह का बिगाड़ करने वाले महिमासाहि आदि को अपना सेनापति नियुक्त किया है।
और कहने से क्या लाम ? तुमने जगरा तक को लूटा जहाँ उसके भाई के -सामन्तों का निवेश था। महिमासाहि आदि को पिंजरे में डालकर नज़र करो। सात साल का कर दो। अपने हाथी बादशाह को दो। सौ नर्तकी भी अर्पण करो। इतना करने से तुम्हारे प्राणों की रक्षा होगी और तुम्हारा राज्य समृद्ध होगा ( १२-८-२०)
हम्मीर ने इसका समुचित उत्तर दिया (१२-२३-३८)। किन्तु धीरे-धीरे दुर्ग की आन्तरिक स्थिति को हम्मीर ने बिगड़ते देखा। उसकी -बहुत सी सेना शत्रु से जा मिली। किसी ने धन के लोम से और किसी ने भय से अलाउद्दीन की नौकरी स्वीकार की। कई चिर-निरोध की यंत्रणा से बाहर निकल गए। ऐसी स्थिति में हम्मीर ने युद्ध का ही निश्चय किया ( १२-४५.४७ ) राणियों ने जौहर किया ( १२-५५ ) और हम्मीर ने अपूर्व युद्ध ( १२-५८-७६ ) युद्ध में धराशायी होकर उसने अनुपम कीति रूपी शरीर की प्राप्ति की ( १२-७७ )
इस काव्य का रचयिता चन्द्रशेखर कवि अकबर का समकालीन था और उसने सुर्जन हाडा के बार बार कहने पर सुर्जन चरित की रचना की थी। काव्य में एकाध बात अतिरज्जित है । उदाहरण के लिए हम्मीर ने कभी दिल्ली पर अधिकार नहीं किया। किन्तु अधिकतर इसके कथन इतिहास सम्मत हैं।
__ मुसलमानी साहित्य हम्मीर विषयक इतिहास का दूसरा पक्ष मुसलमानी इतिहासकारों ने
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