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उद्दीन को आन्तरिक स्थिति का पता न चलता तो दुर्गस्थ लोगों को आशा थी कि सुल्तान घेरा उठा लेगा। . . ३, इस स्थिति में सुल्तान ने कूटनीति का प्रयोग किया। उसने रतिपाल, रणमल्ल आदि को फोड़ लिया। इसके फलस्वरूप उसे दुर्ग का
आन्तरिक हाल ही ज्ञात न हुआ, बहुत से दुर्गस्थ सैनिक मी उससे आ मिले । ... ४. हम्मीर ने जौहर की अग्नि में अपने कुटुम्ब को भस्मसात् कर दुर्ग के द्वार खोल दिए और युद्ध के बाद अपने हाथों ही अपने प्राण दिए। __५. दुर्ग का पतन १० जुलाई, १३०१ के दिन हुआ। .. हम्मीर के अन्तिम युद्ध का पूरा वर्णन हिन्दू काव्यों में ही है। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार उसके साथ में नौ वीर थे। वीरम, सिंह, टाक गङ्गाधर, राजद, चारों मुगल भाई, और क्षेत्रसिंह परमार। वीरम के दिवंगत
और मुहम्मदशाह के मूर्च्छित होने पर हम्मीर आगे बढ़ा। अन्ततः बहुत घायल हो जाने पर उसने, इस इच्छा से कि वह बन्दी न हो, स्वयं अपना कण्ठच्छेद किया।' हम्मीरायण की कथा हम ऊपर दे चुके हैं । उसके अनुसार मी हम्मीर ने स्वयं अपना गला काटा था। हम्मीर महाकाव्य के अनुसार हम्मीर की मृत्यु के बाद भी जाजा ने दो दिन तक दुर्ग के लिए युद्ध किया।२ मुहम्मदशाह के व्यवहार की नयचन्द और फरिश्ता दोनों ने प्रशंसा की है। सुल्तान के यह पूछने पर कि यदि वह
१. सर्ग १३, १९९-२०५ ___२. सर्ग १४. १६. जाजा के लिए इसी प्रस्तावना में तद्विषयक
विमर्श और इण्डियन हिस्टारिकल क्वार्टरली' १९४९, पृष्ठ २९२.२९५ पर हमारा जाजा पर लेख पढ़े।
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