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जातियों ने जिनमें प्रतिहार, चौहान और राष्ट्रकूट प्रमुख हैं भारत की स्वतन्त्रता और संस्कृति की रक्षा के लिए सफल संग्राम किया चौहानों को इस बात का गर्व था कि वे कार्यानुरूप 'आदिवराह' विरूद को धारण करनेवाले महाराजाधिराज भोज के दाहिने हाथ थे । और जब प्रतिहार साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया और मुसलमानी सेनाएँ भारतीय संस्कृति और स्वातन्त्र्य को पददलित करती हुई चारों ओर धावे मारने लगी, चौहानों ने इन विधर्मियों से मोर्चा लेने का बीड़ा उठाया । दुर्लभराज तृतीय ने यवनराज इब्राहीम को रोकने में प्राण दिए, ' अजयराज को प्रसिद्ध : मुस्लिम सेनापति बलिम का सामना करना पड़ा, और अजयराज के पुत्र अर्णोराज ने उस मैदान में, जहाँ वर्तमान आनासागर है, बुरी तरह से मुसल्मानों को परास्त कर अजयमेरु को वास्तव में अजय सिद्ध कर दिया ' । बीसलदेव चतुर्थ को तो गर्व ही इस बात का था कि म्लेच्छों का विच्छेदन कर आर्यावर्त को सच्चे अर्थ में आर्यावर्त बना दिया था । पृथ्वीराज तृतीय के वीरकृत्यों से सभी परिचित हैं । भारत की फूट और राजपूतों की राजनैतिक बालिशता का एक ज्वलंत उदाहरण तराईन का दूसरा संग्राम है" ।
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१. देखें 'अल चौहान डिनेस्टीज' ( प्राचीन चौहान राजवंश ) पृ०३५
,
२. देखें वही पृ० ३८-४२
३. देखें वही पृ० ४३-४५ जिस मैदान में मुसलमान हारे थे, उसे पवित्र करने के लिए ही आनासागर झील का निर्माण हुआ था ( पृथ्वीराज विजय, ६, १-२७ )
४. देखें 'अर्ली चौहान डिनेस्टीज़, पृ० ६०-२
५. विशेष विवरण के लिए देखें वही, पृ० ८८- ९०
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