________________
। १११ )
साल तक दिल्ली में कोई ऐसा शासक न था जो हम्मीर की बढ़ती शक्ति को रोकता। मालवे का पड़ोसी राज्य भी अवनति की ओर अग्रसर हो रहा था। शायद वह दो भागों में भी विभक्त हो चुका हो, जिसमें एक की राजधानी शायद मंडप में और दूसरे की अन्यत्र हो । . वास्तव में देवपाल की मृत्यु के बाद ही स्थिति खराब हो चली थी। मालवे का अमात्य गोगदेव आधे मालवे का स्वामी बन बैठा था; अवशिष्ट भाग में भी कुछ शान्ति न थी। गुजरात में सारङ्गदेव का राज्य था। किन्तु गुजरात के भी समृद्धि के दिन बीत चुके थे। चित्तौड़ में महाराजकुल समरसिंह राज्य कर रहा था जो शक्तिहीन तो नहीं, किन्तु जिगीषु राजा न था। ____ अमीरखुसरो अपने ग्रन्थ मिताहुलफुतूह में, जिसकी रचना सन् १२९१ में हुई थी, हम्मीर के एक साहनी का जिक्र किया है जिसने मालवा और गुजरात तक धावे किए थे। इससे स्पष्ट है कि हम्मीर की दिग्विजय सन् १२९१ से पूर्व हो चुकी थी, और ऐसा हो अनुमान हम हम्मीर के वि० सं० १३४५ ( सन् १२८८) से शिलालेख से भी कर सकते हैं।
हम्मीर विजय महाकाव्य में इस दिग्विजय का वर्णन निम्नलिखित है :
"कोई कहते थे कि इसकी सेना में हाथी अधिक हैं, कोई घोड़े, कोई इसके पैदलों के और कोई उसके रथों के प्राचुर्य की बातें करता था। क्रम से पृथ्वी को पार करता हुआ वह भीमरसपुर पहुंचा। वहाँ शत्रुत्व धारण करने वाले अर्जुनराजा को अपनी तलवार से कूटकर उसने अपना आज्ञाकारी
१, ऊपर उद्वरण देखें। २. हम्मीर महाकाव्य, ९, १४-४८, प्रशंसात्मक विशेषण और इतिहास
की दृष्टि से असार्थक वर्णनों का अनुवाद हमने नहीं किया है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org