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उसके कार्यभार में उतनी ही वृद्धि हुई थी जितनी अनेक वस्तुओं से भरे शकट में कुछ शूर्प रखने से। किन्तु और कुछ हुआ या न हुआ युद्ध में एक नवीन तीव्रता आ गई। रात दिन युद्ध होने लगा। प्रत्येक दिशा में चलते फिरते ऊँचे-ऊँचे मचान ( गरगच ) तैयार किए गए। शाही सेना जो कोई युक्ति करती राय उसकी काट कर देता ।' पहाड के निकट सुरंग लगाई, और खाई को पूलियां और लकड़ी के टुकड़ों से भर दिया। जब ये दोनों साधन तैयार हो गए तो अलाउद्दीन ने हमले की आज्ञा दी। किन्तु चौहानों ने खाई की लकड़ियां अग्नि गोलों - जला डाली और लाक्षायुक्त तेल सुरंग में फेंका जिससे सुरंग में घुसे सैनिक भुन गए और वह सुरंग उन्हीं के शरीरों से मर गई ।' इस प्रकार एक वर्ष बीत गया और दुर्ग को कोई हानि न पहुँची ।४ अमीर खुसरो ने यही बात अपनी काव्यमयी शैली में कही है, 'हिन्दुओं ने किले की दसो अट्टारियों में आग लगा दी, किन्तु अभी तक मुसल्मानों
१-सर्ग १२, १-४ ।
२- देखें फुतूहस्सलातीन का अवतरण और हम्मीरमहाकाव्यः सर्ग १३. श्लोक ४८
३-हम्मीरमहाकाव्य, १३, ४७ ।
४-देखें फुतू हुस्सलातीन का अवतरण । - इसी के आस पास हम्मीर काव्यों में नर्तिका धारादेवी के मरण की कथा है। इसके लिए पाठक वर्ग हम्मीर काव्य और हम्मीरायण का तुलनात्मक विवेचन देखें । इतिहास की दृष्टि से इस घटना का-चाहे यह सत्य हो या असत्य-विशेष महत्व नहीं है।
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