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अमीर खुसरो ने हम्मीर के गुजरात तक के आक्रमणों का उल्लेख किया है ।
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इन प्रयाणों से हम्मीर को प्रचुर धन की प्राप्ति हुई । उसकी कीर्ति भी. दिग्दिगन्त में फैली । ब्राह्मणों और गरीबों को भी धन की प्राप्ति हुई । किन्तु अन्ततः उसे इस नीति से विशेष लाभ हुआ या नहीं - यह संदिग्ध है । ये प्रयाण यदि किसी मुसल्मानी प्रान्त या राज्य पर होते तो देश को अधिक लाभ होता ।
विशेष युद्ध प्रिय
किन्तु हम्मीर मुसलमानों पर आक्रमण करता या न करता उनसे उनका संघर्ष अवश्यम्भावी था। सन् १२९० ई० में गुलाम वंश का अन्त हुआ और जलालुद्दीन खल्जी दिल्ली का सुल्तान बना न होने पर भी उसने रणथम्भोर पर आक्रमण करना आवश्यक समझा । पृथ्वीराज के किसी वंशज की बढ़ती हुई शक्ति दिल्ली के मुसल्मानी साम्राज्य के लिए असह्य थी ।
हम ऊपर इस आक्रमण के तत्सामयिक वर्णन को उद्धृत कर चुके हैं । उस आक्रमण की मुख्य घटनाएँ ये थीं :---
(१) रणथम्भोर की पहाड़ियों के निकट पहुँच कर तुर्की ने गांवों को नष्ट करना शुरू कर दिया । हिन्दुओं के ५०० सवारों से उनकी मुठभेड़ हो गई। इसमें इनकी विजय हुई | ( मिफताहुल फुतूह )
(२) दूसरे दिन मुसल्मानी सेना
झायन की कठिन घाटी में प्रविष्ट हो गई। हम्मीर के साइनी ने, जिसने मालवे और गुजरात तक धावे मारे थे, इन पर आक्रमण किया किन्तु वह पराजित हुआ । फायन मुसलमान के हाथ आया ( वही )
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