________________
( ८४ ) .
तीसरे कवित्त को
स्थान पर खेम
अधिक शुद्ध हैं ।
हम इन्हें कहें या न कहें इसमें भी हमें सन्देह है, क्योंकि यह प्रायः 'रणथंभोर रै रांणै इमीर इठालै रा कवित्त का शब्दानुवाद या भावानुवाद मात्र है। कहीं कहीं मल्ल की कृति त्रुटित या अस्पष्ट है । उसकी पूर्ति और समझ में यह रचना अवश्य सहायक है । दोनों काव्यों के पहले दो कवित्त कुछ शब्द भेद होने पर भी वास्तव में एक ही हैं। मल्ल के खेभ ने पाँचवाँ बना दिया है। चौथे कवित्त के के आठ कवित्त हैं । किन्तु कुछ नाम मल्ल के कवित्त से अलीखान से उलखाँ नाम उलूगखान के अधिक सन्निकट है। साथ ही नुसरतखाँ 'थटा' और 'तिलंग' के नाम बढ़ा दिए गए है । खेम का सातवाँ कवित्त मल्ल के पाँचवें कवित्त का, और नवां कवित्त मल के ग्यारहवें कवित्त का और दसवाँ कवित्त मल्ल के आठवें कवित्तका रूपान्तर है । मल्ल का बारहवाँ वित्त खेमका ग्यारहवाँ है । बारहवें कवित्त में मल्ल के कवित्त की सामान्य छाया ही आ सकी है । खेम का बारहवाँ पद्य प्रायः नवीन है : किन्तु चौदहवां पद्य फिर मल्ल के पन्द्रहवें पद्य का रूपान्तर है । 'बात' खेम भाट की या तो निजी कृति है या इसे किसी अन्य भाट ने जोड़ दी है । जाजा
1
देवलदेवी का पति
के बड़गूजर होने में ही हमें अत्यधिक सन्देह है उसे बनाकर तो खेम ने कल्पना की परकाष्ठा कर डाली है । इम्मीर महाकाव्य का कथन तो इसका विरुद्ध है ही ; यह अन्य प्राचीन और नवीनकृतियों से भी असमर्थित है । खेम का पन्द्रहवाँ पद्य मल्ल के नवें पद्य का रूपान्तर है : किन्तु कुछ फेरफार सहित । इसका वाइड मल्ल का छाइड है। रायपाल, भोजदेव और राउत जाजा आदि के नाम इसमें अधिक हैं ।
खेम का सोलहवां पद्य उसकी कृति है । रणथंभोर के पतन का
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org