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. हम्मीर अपनी प्रेयसी से म्लेच्छों के विरूद्ध रणाङ्गण में जाने की अनुमति चाहता है। दूसरे में म्लेच्छों के विरुद्ध हम्मीर के प्रयाण का वर्णन है । तीसरा पद्य जज्जल विषयक है । एक पद्य में हम्मीर की मलय, चोलपति,गुर्जर, मालब और खुरसाण पर विजय का वर्णन है । यह खुरसाण भी भारत देशीय कोई मुसलमान राजा है। छठे पद्य में सेना के प्रयाण का बहुत ही सजीव वर्णन है। सातवें पद्य में वीभत्स रणस्थली में विचरते हुए. हम्मीर का वर्णन है
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: इन पद्यों में पर्याप्त अतिरञ्जना है । किन्तु इस अतिरञ्जना के आधार: पर इनके समय पर कुछ कहना असम्भव है । इतिहास में ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं है जब कवि समसामयिक होते हुए मी अतिरञ्जना करता है वाक्पति का 'गौडवो' ऐसी ही कृति है । नरवर्मन् द्वारा लक्ष्मवर्मन् की विजय का वर्णन रघुवंश के दिग्विजय की याद दिलाता है । गौड, घोड़, बंग, अंग, गूर्जर, मलय, चोल, पाण्ड्य, कीर, भोटादि की भर्ती जिस आसानी से होती है वह अनेक शिलालेखों में दर्शनीय है । भाषा की दृष्टि से प्राकृतपैङ्गलम् के पद्यों को शायद सन् १४०० के आसपास रखना
ठीक हो ।
शार्ङ्गधर का हम्मीरविषयक उल्लेख और वर्णन भी पर्याप्त प्राचीन
हैं । ग्रन्थ के आरम्भ में ही अपने वंश के वर्णन के प्रसङ्ग में शाङ्ग घर: ने लिखा है कि पहले शाकम्भरी ( सांभर ) देश में श्रीमान् हम्मीर राजा चाहुबाण वंश में उत्पन्न हुआ, वह शौर्य में अर्जुन के समान ख्यात था। परोपकार के व्यसन में निष्ठ, पुरन्दर के गुरु ( बृहस्पति ) के समान, राघवदेव नाम का द्विजश्रेष्ठ उसके सभ्यों में मुख्य था" । शाङ्ग घर:
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