________________
(
७८
)
इस राघवदेव का पौत्र था, और जिस विद्वान् को नयचन्द्रसूरि ने भी 'षड़भाषा-कविचक शक्र' और 'अखिल-प्रामाणिकाप्रेसर' कहा है उसके लिए उसके पौत्र के हृदय में कुछ अभिमान होना स्वाभाविक ही है। साथ ही नयचन्द्र के उल्लेख से यह भी सम्भावना होती है कि हम्मीर की सभा में अनेक षडभाषाकषियों और तार्किकों का मण्डल था जिनमें मुख्य राघवदेव था। पद्धति का १२५७ वा श्लोक भी हम्मीरपरक है । कवि अज्ञात है। हम्मीर की सेनाके प्रयाण को उद्दिष्ट कर वह कहता है, 'हे चक्र (चक्रवाक ! ) चक्री ( चकवी !) के विरह ज्वर से तू कातर मत हो। रे कमल तू संकुचित न हो। यह रात्रि नहीं है। हम्मीर भूप के घोड़ों की टाप से विदीर्ण भूमि की धूलि के समूहों से यह दिन में ही अन्धकार हो गया है।"
हम्मीर-विषयक अन्य प्राचीन रचना विद्यापति की पुरुष-परीक्षा है। राजस्थान से बहुत दूर रहने पर भी कवि को हम्मीर विषयक अनेक तथ्य ज्ञात थे। उसका अदीन अलाउद्दीन और महिमासाह मुहम्मदशाह है। अलाउद्दीन और हम्मीर के सन्देश और प्रतिसन्देश भी इतिहास सम्मत तथ्य हैं। मन्त्रियों के नाम रायमल और रामपाल हैं जो रणमल्ल और रतिपाल के विकृत स्वरूप से प्रतीत होते हैं। जाजमदेव ( जाजा) आदि योद्धाओं और महिमासाहि के अन्त तक हम्मीर का साथ देने की कथा भी पुरुष-परीक्षा में है। किन्तु जाजा के लिये इसमें 'योध' शब्द प्रयुक्त होने से यह अनुमान करना कि जाजा किसी उच्चपद पर प्रतिष्ठित न था कुछ विशेष तर्कानुमत प्रतीत नहीं होता। योद्धा होना तो उच्च से उच्च पदस्थ राजपूत के लिए भूषण है, दृषण नहीं। जोधपुर के राज्य के संस्थापक का नाम केवल जोधा मात्र था।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org