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डीलइ ( ९६ ), डीलज (१००), डील ( १९०):-डील का अर्थ शरीर है। डीलइ स्वयं के अर्थ में प्रयुक्त है। डीलज = डील ही
धइवड़ ( १३५) = ध्वजपट हम्मीर सम्बन्धी अन्य साहित्य और प्राचीन उल्लेख
हम्मीर विषयक साहित्य हम्मीरमहाकाव्य और हम्मीरायण तक ही सीमित नहीं है। हम्मीर का जीवनोत्सर्ग एक महान् आदर्श के अनुसरण में हुआ था। जब कभी ऐसे अवसर उपस्थित हुए, जनता उसे याद करने से न भूली । रणमल्ल छन्द में एक राठौर वीर के युद्ध का कीर्तन है। किन्तु कवि श्रीधर काव्य के आरम्भ में ही हम्मीर का स्मरण करता है। रणमल्ल उपमेय तो हम्मीर उपमान है:
हम्मीरेण त्वरितं चरितं सुरताण फोज संहरणम् ।
कुरुत इदानीमेको वरवीरस्त्वेव रणमल्लः ॥३॥ ( हम्मीर ने शीघ्र ही सुल्तान की फौज का संहार किया। अब वही अकेला श्रेष्ठ वीर रणमल्ल करता है।)
अचलदास खीचीरी वचनिका का रचयिता शिवदास तो हम्मीर को भूल पाता ही नहीं। जब हुशंगशाह की फौज चलती है तो लोग पूछते हैं कि "बादशाह किसके विरुद्ध बढ़ रहा है। अब तो सोम सातल कान्हड़दे नहीं हैं। हठीला राव हम्मीर भी अस्त हो चुका है" ( ९-४ )। अन्यत्र हम्मीर की तरह अचलदास भी कलियुग को बदलने वाले और आदर्शपूर्ति के लिए मरणोद्यत व्यक्ति के रूप में निर्दिष्ट है। (१४.१५) "सिंहासन पर बैठा अचलदास सातल सोम और हम्मीर से भी बढ़कर दिखाई पड़ता था ( १५८)। अपनी रानियों के सामने जौहर के आदर्श को उपस्थित
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