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और चारणी साहित्य की अनेक पुस्तकों का विषय विवेचन में यथासमय प्रयोग करेंगे।
हम्मीरायण में हम्मीर के पिता का नाम जयतिगदे दिया है और हम्मीर महाकाव्य ने जैत्रसिंह । हम्मीर के वि० १३४५ के शिलालेख में जैत्रसिंह नाम ही है; किन्तु यह सम्भव है कि बोलचाल की भाषा में जैत्र सिंह का नाम जैतिग ही रहा हो। हम्मीरायण ने युद्ध का केवल मात्र यही कारण दिया है कि हम्मीर ने विद्रोही मुगल सरदार महिमाशाहि और गर्भरूक को शरण दी थी। हम्मीरमहाकाव्य को भी यह कारण अज्ञात नहीं है। किन्तु उसने मुख्यता अन्य राजनैतिक कारणों को दी है । एक देश में दो दिग्विजयी नहीं हो सकते। अलाउद्दीन को यह बात खलती थी कि रणथंभोर उसे कर नहीं दे रहा था; वही रणथंभोर जो किसी समय दिल्ली के अधीन था उधर हम्मीर कोटिमखी था ; उसे अपने बल का गर्व था। भोज के प्रतिशोध की कथा बाद में आती है उससे काव्य में रोचकता अवश्य बढ़ी है; किन्तु यह समझना भूल होगा कि हम्मीरमहाकाव्य ने उसे प्रमुखता दी है। वास्तव में उसका दृष्टिकोण प्रायः वही है जो तारीख फिरोजशाहो का । उसे भी मुहम्मदशाह की कथा ज्ञात थी, तो मी प्रमुखता उसने अल्लाउद्दीन की दिग् जिगीषा को ही दी है । और वास्तव में यह बात है भी ठीक । इन दोनों उच्चाभिलाषी व्यक्तियों में युद्ध अवश्यम्भावी था चाहे मुहम्मदशाह हम्मीर के दरबार में शरण ग्रहण करता या न करता। उत्तर के अन्य राज्यों में कौन मुहम्मदशाह पहुँचे थे जो अलाउद्दीन ने उनपर आक्रमण किया ? विरोधाग्नि तो अल्लाउद्दीन के समय से पहले ही ज्वलित हो चुकी थी। उसमें मुहम्मदशाह को दारणदान ने एक प्रबल आहुनि देकर
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