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नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग १५, पृष्ठ १५७-१६८, में श्री पृथ्वीराज चौहान का 'रणथंभोर' पर लेख भी पठनीय है। इसके मुख्य तथ्य निम्नलिखित है :(१) मोरकुण्ड से पहाड़ी का चढ़ाव है। यहां से कुछ चढ़ कर पक्का पर- कोटा और मोर दरवाजा नाम की एक पोली है । (२) यहां से उतर कर और फिर उतार चढ़ाव के बाद दूसरा परकोटा है
जिसका नाम बड़ा दरवाजा है। (३) इससे उतर कर एक बड़ा मैदान है जिसके तीन तरफ पहाड़ियां और __चौथी ओर रणथंभोर का दुर्ग है। इसी मैदान में पद्मला तालाब
है, छोटा पद्मला दुर्ग में है। (४) आधे कोस चलने चलने पर किले पर चढ़ने का फाटक आता है जिसे
नौलखा कहते हैं। किले का पहाड़ ओर से छोर तक दीवार की तरह
सीधा खड़ा है। उस पर मजबूत पक्का परकोटा और बुर्ज बने हुए हैं। (५) नौलखा दरवाजे से ऊपर तक पक्की सीढ़ियां बनाई गई हैं, जिन पर
तीन फाटक बीच में पड़ते हैं। (६) किले में पांच बड़े तालाब हैं। (५) दिल्ली दरवाजे पर शंकर का मन्दिर है। 'यही राव हम्मीरदेव का
सिर है जो मनुष्य के सिर के बराबर है। कहते हैं राव हम्मीर जबअलाउद्दीन को परास्त करने आए तो गढ़ में रानियों को न पाया। वे सब भस्म हो गई थीं। राव को इससे इतनी ग्लानि हुई कि उन्होंने आत्मघात करने का निश्चय कर लिया, लेकिन कुछ विचार कर शिव के मन्दिर में गया और पूजन कर कमल काट कर शिव पर चढ़ा दिया।
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