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हाथी घोड़ा घरि हुँता, उलगाणा रा लाख ;
सात छत्र धरता तिहां, कोई न साहइ बाग || २८१ ॥
अन्त में हम्मीर की राजलक्ष्मी के अन्त से भी माण्डर ने एक अपने
ढंग का नवीन निष्कर्ष निकालते हुए लिखा है :
(ए) खाज्यो पोज्यो विलसज्यो, ज्यांरइ संपइ होइ ।
मोह म करिज्यो लख्मी तणउ, अजरामर नहिं कोइ ॥ २८७ ॥
(ए) खाज्यो पीज्यो विलसज्यो. धनरउ लेज्यो लाह ;
कवि "भांडर" असउ कहइ, देवा लांबी बाँह ॥ २८८ ॥ मोल्हा भाट ने भी जिस रूप से अलाउद्दीन का सन्देश हम्मीर के I "भाट ने कहा
उक्ति वैचित्र्य है
सामने पेश किया है उसमें अच्छा "हे राजा सुनो, लक्ष्मी और कीर्ति तुझे वरण करने के लिए आई है । सच कह तू किस से विवाह करेगा। तूं वर है, वे दोनों सुन्दर तरुणियां हैं। सुल्तान ने स्वयंवर रचा है । हे हम्मीरदे, जिसे तू ठीक समझे ग्रहण कर ।" राजा ने कहा, "हे बारहट, कीर्ति और लक्ष्मी में कौन भली है ? लक्ष्मी से बहुत द्रव्य घर आएगा । कीर्ति देश, विदेश में होगी ।” मोल्हा ने कहा, "मुझे सुल्तान ने भेजा है। उससे तू कुमारी देवलदे का विवाह कर और उसके साथमें धारू और बारू को भेज । सुलतान ने बहुत से हाथी और दो मीर भी मांगे हैं। इतना करने पर वह तुम्हें निहाल कर देगा | वह तुझे मांडव, उज्जैन, और सवालाख सांभर देगा' | ये चारों बातें पूरी कर अनन्त लक्ष्मी का मोगकर । राजा सुनो, कीर्ति दुर्लभ १ - यह अर्थ सर्वथा स्पष्ट नहीं है । वास्तव में ये स्थान उस समय न
बादशाह के अधीन थे, और न हम्मीर के ।
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