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( २२ )
- इससे अग्रिम चौपाई में यह वर्णित है कि राज ने कोठारी से पूछा कि कोठार में कितना धान है।
बनिये ने सब अंबार खाली दिखा दिए। . (३२) उसने भृत्य माहे- (३२) मूल पद्यांश रखे महेसरी करउ प्रधान श्वरी को प्रधान बनाने (२२५) में रखे' शब्द का अर्थ डा० गुप्त ने गलत किया तथा दोनों अमीरों को है यह अव्यय है और फलितार्थ निषेधात्मक है श्री सम्मान देने के लिए कह जिनराजसूरि और श्रीमद् देवचन्द्रजी आदि राज कर कुमार को विदा स्थानी तथा गूजराती के कवियों ने इसका प्रचुरता से किया।
प्रयोग किया है। गूजरात में तो आज भी बोलचाल में निषेध पर बल देने के लिए यह शब्द पर्याप्त प्रचलित है । अतः यहां माहेश्वरी प्रधान बनाना निषिद्ध किया है । आगे महेसरी ना बाढिज्यो कान भी
निषेध का ही समर्थक है। (३३) मुकलावइ = मुक्त (३३) मुक्त के स्थान पर विसर्जन करना या किया । (२७४) विदा देना अधिक उपयुक्त है ।
(३४) “जमहर (जौहर) (३४) चउपई यह है:करने के लिए हम्मीर ने
जमहर करी छड़उ हुयउ, हमीर दे चहुआण । घोड़ा पलाणा।"
सवालाख संभरि धणी, घोडई दियइ पलाण ॥२७९॥
हम्मीर ने जौहर करने के लिए नहीं अपितु जौहर कार्य से विरत होने पर घोड़ा पलाणा। जमहर स्त्रियों के लिए था; पुरुषों के लिए जौहर के बाद आमरणान्त युद्ध ।
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