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बारह वर्ष तक इस को लाख के तेल से जला दिया। इस प्रकार से उसने तरह युद्ध चला (पद्य २१२) बादशाह के अनेक उपायों को व्यर्थ किया। (२०३-२१२)
(१३-३९-४८) ६. दिल्ली से वापिस ६. वर्षा आ गई। यथा तथा संधान की इच्छा आने की अर्ज होने लगी। से अलाउद्दीन ने दूतों द्वारा रतिपाल को बुलाया। तब बादशाइ ने हम्मीर को कहला कर भेजा,
उसे खूब प्रसन्न किया ! और उसके सामने अंचल "बारह वर्ष युद्ध की सीमा पसार कर कहने लगा, “मैं उस दुर्ग को लिए बिना है। हम पर्याप्त रण-क्रीड़ा
- गया तो मेरी सब कीति लुप्त हो जाएगी। किन्तु कर चुके हैं। अब मुझे बिदा दो। मैं तो तुम्हारा मेरे सौभाग्य से तुम आ गए हो। मैं तो केवल मेहमान हूँ।" लोगों की विजय का इच्छुक हूँ। यह राज्य तो तुम्हारा ही सलाह से हम्मीर ने अपने दो अत्यन्त विश्वस्त
होगा।” सुल्तान ने उसे खूब मदिरा पिलाई । प्रधानों को बात चीत के बादशाह को वचन देकर रतिपाल वापस लौटा । लिए भेजा। बादशाह ने
(१३-४९-८२) उन्हें खुब मान दिया। उन्हें पूरी बून्दी और कुछ अन्य ग्रास का भी आश्वासन देकर बादशाह ने उन्हें अपनी ओर मिला लिया (२१३-२३०)
७. जब हम्मीर ने ७. रणथंभोर लौट कर रतिपाल ने राजा को पूछा तो मन आई बात भड़काते हुए कहा, “अलाउद्दीन कहता है कि वह मूर्ख बना दी कि बादशाह तो अपनी लड़की को न देगा तो मैं उसकी स्त्रियों को
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