Book Title: Haimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Author(s): Girijashankar Mayashankar Shastri
Publisher: Girijashankar Mayashankar Shastri
View full book text ________________ 1177 असिद्धं बहिरङ्गमन्तरङ्गे // 21 // यत्प्रकृत्याश्रितं, पूर्व वा व्यवस्थितम् , अल्पनिमित्तं वा तदन्तरङ्गम् ; यच्च प्रत्ययाश्रितम , बहिर्वा व्यवस्थितं बहनिमित्तं वा तद बहिरङ्गम्। अन्तरङ्गे कार्ये कर्तव्ये बहिरङ्गममसिद्धमसदिव स्यात् / यथा, गिर्योरित्यादौ प्रत्ययाश्रितत्वेन बहिर्व्यवस्थितत्वेन वा बहिरङ्गस्य यत्वस्य प्रकृत्याश्रितत्वेन पूर्व व्यवस्थितत्वेन वा अन्तरङ्गे 'भ्वादे मिनो० // 2 / 1 / 63 // इति दीर्घ कर्तव्ये असिद्धत्वान्न दीर्घः / ज्ञापकमस्य 'न सन्धिङी० // 74|111 // इत्यत्र सन्धिविधित्वेन द्वित्वविधावपि स्थानिवद्भावनिषेधस्य सिद्धौ द्विग्रहणम् / तद्धि दद्धयत्रेत्यादौ धस्य 'अदीर्घाद्विरामैकव्यञ्जने' // 1 // 3 // 32 // इति द्वित्वे क्रियमाणे 'स्वरस्य परे प्राग्विधौ' // 7 // 110 // इत्यनेन यत्वादेः प्राप्तस्थानिवद्भावस्य सन्धिविधित्वेन निषेधे कृतेऽपि पुनरनेन न्यायेनासिद्धत्ववारेण प्राप्तस्थानिवद्भावनिषेधार्थ - कृतम् / अस्य न्यायस्यासत्त्वे तु स्थानिवद्भावनिषेधस्य सन्धिविधित्वेनैव सिद्धत्वात् द्विग्रहणं व्यर्थमेव स्यात् / अनित्यश्चायमुत्तरेण बाध्यमानत्वात् // 21 // न स्वरानन्तये // 22 // स्वरयोरानन्तर्ये सति अन्तरङ्गे कार्ये कर्तव्ये बहिरङ्गमसिद्धं न / पूर्वेण प्राप्तेऽतिप्रसङ्गे निषेधार्थोऽयं न्यायः। यथा इयेषेत्यादौ बहिर्व्यवस्थितत्वेन बहिरङ्गोऽपि इष्धातोर्गुणः, पूर्वव्यवस्थितत्वेनान्तरङ्गे 'पूर्वस्यास्वे स्वरे य्वोरियुवू' // 4 // 1 // 37 // इतीयादेशे कर्तव्ये नासिद्धः स्वरयोरानन्तर्यसदभावात्। ज्ञापकमस्य 'वृत्त्यन्तोऽसषे' // 1 / 1 / 25 // इति निर्देश एव / स्वरयोरानन्तर्येऽपि पूर्वन्यायेन बहिरङ्गासिद्धत्वं स्यात्तीत्र वृत्त्यन्तशब्दाग्रस्थस्य से रोः 'अतोऽति रोरुः' // // 3 / 20 // इत्यनेन कृतस्योत्वस्य पदान्तरस्थाकारसापेक्षत्वेन बहिरङ्गत्वाद् 'अवर्णस्येवर्णादिनै० // 12 / 6 // इत्यनेन प्राक्स्थिताकारेण सह ओत्वे एकपदापेक्षत्वेनान्तरङ्गे कर्तव्ये असिद्धत्वेन 'वृत्त्यन्तोऽसषे' इति निर्देशो नैव संभवेत् / अनित्यत्वमस्य तु न ज्ञायते // 22 // गौणमुख्ययोमुख्य कार्यसंपत्ययः // 23 // मुख्यस्य बलिष्ठत्वमनेन सूच्यते / यथा 'चरणस्य स्थेणोऽद्यतन्यामनुवादे' // 311138 // इति सूत्रे स्थेणोर्मुख्यकर्तुश्चरणस्येति व्याख्यातम् / संबन्धहेतूनां कारकाणां षट्संख्यत्वेन स्थेणोः करणादित्वेनापि संबन्धित्वं चरणानां संभवत्यपि 'चरणस्य स्थेणः०' इति सूत्रवृत्तौ स्थेणोः कर्तृत्वेन संबन्धिनो ये चरणा इति यद् व्याख्यातं तत्कर्तुरेव स्वातन्त्र्यात् सर्वकारकेषु मुख्यत्वेनैतन्न्यायात्कर्तु। रेव व्याख्यात्र प्राप्नोतीति बुद्धया / अपिच कर्तृत्वेन संबन्धे सत्यपि कर्ता गौणो मुख्यश्च संभवतीति अस्मान्न्यायान्मुख्यत्वभाजा क; सह संबन्ध एव समाहारः स्यान्न तु गौणत्वभाजा क; सह संबन्धे / अस्य ज्ञापकं 'चरणस्य स्थणः०' इति सामान्येनोक्तिरेव / स्थणोर्मुख्यकर्तुश्चरणस्येतीष्टेऽपि यत्तथैव नोक्तमित्येत 148
Loading... Page Navigation 1 ... 1188 1189 1190 1191 1192 1193 1194 1195 1196 1197 1198 1199 1200 1201 1202 1203 1204 1205 1206 1207 1208 1209 1210 1211 1212 1213 1214 1215 1216 1217 1218 1219 1220 1221 1222 1223 1224 1225 1226 1227 1228 1229 1230 1231 1232 1233 1234 1235 1236 1237 1238 1239 1240 1241 1242 1243 1244 1245 1246 1247 1248 1249 1250 1251 1252 1253 1254