Book Title: Haimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Author(s): Girijashankar Mayashankar Shastri
Publisher: Girijashankar Mayashankar Shastri
View full book text ________________ 1207 'वृत्तिविषये नित्यैवापवादवृत्तिः' इतिरूपे शापकं तु 'पारेमध्येऽग्रेऽन्तः षष्ठया वा' // 3 // 1 // 30 // इत्यत्र वाग्रहणम् / तद्धि पक्षे औत्सर्गिकषष्ठीसमासानुशार्थम् / एतन्न्यायाभावे क्रमेणोत्सर्गापवादयोः प्रवृत्तेः पक्षे औत्सर्गिकः षष्ठीसमासोऽपि सिद्ध एवेति किमिति तदनुज्ञार्थं वाग्रहणं कुर्यात् / तद्धितवृत्तिर्यथा-गर्गस्यापत्यं वृद्धं गार्ग्यः इत्यत्र 'गर्गादेः०' // 6 // 42 // इति यञ् वाक्यं च, न तु औत्सगिको गार्गिरिति 'अत इञ्' // 6 // 1 // 31 // इति इञ् / अत्र चाद्यांशे ज्ञापकं 'नित्यं अभिनोऽण् // 7 // 3 // 58 // इत्यत्र नित्यग्रहणम् / तद्धि अनेन प्राप्तस्य विकल्पस्य निषेधार्थम् / उत्तरांशे तु ज्ञापकं 'वोदश्वितः' // 6 / 2 / 144 // इत्यत्र वाग्रहणम् / तद्धि पक्षे औत्सर्गिकाणर्थम् / एतन्न्यायांशाभावे क्रमेणोत्सर्गापवा. दयोः प्रवृत्तेः पक्षे औत्सर्गिकोऽणपि सिद्ध एवेति किमिति तदनुज्ञार्थ वाग्रहणं कुर्यात् / अयं न्यायः समासतद्धितवृत्तिव्यवस्थाऽनुवादमात्रपरो न त्वनेन नव्यं किंचिद् व्यवस्थाप्यते,एतत्साध्यस्य तत्तत्सूत्रैरेव सिद्धेः। अनित्यत्वमस्य नास्ति // 12 // एकशब्दस्यासंख्यात्वं कचित् // 13 // एकशब्दस्य प्रसिद्धिस्तावत्संख्यात्वस्यैवास्तीत्यतस्तत्प्रतिरोधाऽर्थोऽयं न्यायः। यथैकमह इत्यत्रैकशब्दस्य सदपि संख्यात्वं न गण्यते / ततश्च 'अह्नः' // 2174 // इत्यट्समासान्ते 'नोऽपदस्य तद्धिते' // 74 / 61 // इत्यन्त्यस्वरादिलोपे ' अहनि!हकलहाः' (लिङ्गा० पुं० 15 // 3) इति पुंस्त्वे प्राप्तेऽपि 'अहःसुदिनैकतः' (लिङ्गा० न० 8 / 2) इति विशेषविधिना क्लीबलिङ्गत्वे एकाहमिति सिद्धम् / एकशब्दस्य संख्यात्वगणने 'सर्वांशसंख्याऽव्ययात्' // 73 / 118 // इत्यनेनाटि अनेनैव चाह्नादेशे 'अर्द्धसुदर्शनदेवनमह्ना' (लिङ्गा० पुं० 1131) इति पुंस्त्वे च एकाह्न इत्यनिष्टं स्यात् / शापकमस्य संख्यातेकपुण्यवर्षा०' // 73 / 119 // इत्यत्र चकारेण 'सर्वाशसंख्याऽव्ययात् ' // 73 / 118 // इति सूत्रात् . संख्यानुवृत्तावपि एकशब्दग्रहणम् / क्वचिदिति वचनाच्च बहुत्र एकशब्दस्य संख्यात्वं गण्यते एव / तेन एकधेत्यत्र 'संख्याया धा' // 72 // 104 // इति धाः सिद्धः। अनित्यत्वमस्य न दृश्यते // 93 // .. आदशभ्यः संख्या संख्येये वर्तते न संख्याने // 94 // आदशभ्य इति कोऽर्थः ? दशन्शब्दस्य प्रयोगावधि-अष्टादशसंख्यावधीति यावत् / ततश्चाष्टादशसंख्यावधि संख्या संख्येयेन सह सामानाधिकरण्येन प्रयोज्येत्यर्थः / यथैको द्वौ त्रयो वा यावदष्टादश घटाः न तु घटानामिति / एकोनविंशत्यादिसंख्या तु संख्येये संख्याने च वर्तते / यथैकोनविंशतिघंटा घटानां वा यावन्नवनवतिः शतं सहस्रं लक्षं कोटिवेत्यादि / शापकमस्य 'सुज्वार्थे संख्या संख्येये.' // 3 // 1119 // इत्यनेन संख्येये वर्तमानया संख्यया सह समासविधानम् / एतन्न्यायाभावे का संख्या संख्येयवर्तिनीति कथं ज्ञायेत / तदज्ञाने च कथं संख्यानवतिसंख्यापरिहारेण संख्येयवर्तिसंख्यया समासः कर्तुं शक्येत /
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