Book Title: Haimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Author(s): Girijashankar Mayashankar Shastri
Publisher: Girijashankar Mayashankar Shastri
View full book text ________________ 1188 त्वे त्वस्य कुण्यतिक्रियायोगादनेनैव सूत्रेण यदः संप्रदानसंज्ञाभवनेन चतुयैव भाव्यं नतु प्रतीतिपदयोगलक्षणया 'भागिनि प्रतिपर्यनुभिः' // 2 / 2 / 37 // इति द्वितीयया // 47 // लुबन्तरङ्गेभ्यः / / 48 // __ अन्तरङ्गेभ्योऽपि कार्येभ्यो बहिरङ्गा लुब् बलवतीति योज्यम् / यथा गर्गस्थापत्यानि वृद्धानि 'गर्गादेर्यञ् // 6 // 1 // 42 // इति यत्रि गर्गाः। अत्र प्रकृत्याश्रितत्वेनान्तरङ्गामपि 'वृद्धिःस्वरेष्वादेः-॥ 741 // इति वृद्धिं बाधित्वा प्रत्ययाश्रितत्वेन बहिरङ्गापि यत्रो लुप् प्रथमं स्यात् ततश्च णित्प्रत्ययाभावान. वृद्धिः / ज्ञापकमस्य 'त्वमौ प्रत्ययोत्तरपदे चैकस्मिन् ' // 2 // 1 // 11 // इत्यत्र प्रत्ययोत्तरपदग्रहणम् 'तद्धि त्वदीयः, मत्पुत्रः इत्यादौ न्यायेनानेन अन्तरङ्गेभ्योऽपि कार्येभ्यो लुब्धिधेर्बलवत्त्वात् सूत्रे स्याद्यधिकारेणैव निर्वाहे सत्यपि प्रथममेव स्यादेलपो भवनात् तद्वारेण त्वमादेशौ नैव सेत्स्यतः इत्याशंकयैव कृतम् / अनित्यत्वं त्वस्य न दृश्यते // 48 // सर्वेभ्यो लोपः // 49 // पूर्वन्याये लुपो बलवत्त्वस्योक्तत्वादत्र लोपशब्देनादर्शनमात्ररूपा लुग्गृह्यते / तथा च लुग्विधिः सर्वविधिभ्यो बलीयानिति स्थितम् / यथा अबुद्धत्यत्र ‘धुह्रस्वाद् ' // 4 / 370 // इत्यनेन सिचः सर्वेभ्यः प्रथमं लोपात् 'गडदवादेः०' // 2277 // इत्यनेनादेश्चतुर्थत्वं न / ज्ञापकमस्य 'सस्तः सि' // 4 // 392 // इत्यत्र विषयसप्तमोव्याख्यानम् / निमित्तसप्तमोव्याख्याने वसेरद्यतनोतामि अवात्तामित्यादौ सिजुत्पादानन्तरमेतन्न्यायाल्लोपविधेर्बलीयस्त्वेन पूर्वमेव 'धुड्ड्स्वाद' // 4 // 370 // इति सिज्लोपात् 'सस्तः सि' इति सस्तो न सिद्धयतीत्येतदर्थ तत् कृतम् / एवं च अवात्तामित्यादौ सिज्विषय एव सस्तः सीति सस्य तत्वे ततः सिचि तस्य लुकि स्थानिवद्भावे च 'व्यञ्जनादेवेपिान्त्यस्य०' // 4 // 3 // 47 // इति वृद्धिः सिद्धा / अनित्यश्चायम् / उत्तरेण बाध्यमानत्वात् // 49 // लोपात् स्वरादेशः // 50 // बलवानिति योज्यम् / एवमग्रेऽपि / अस्य च पूर्वापवादत्वादत्रापि लोपशब्दस्य लुग्वाचित्वम् / यथा श्रीर्देवता अस्येत्यत्र 'देवता' // 62 / 109 // इत्यणि परमपि 'अवर्णेवर्णस्य' // 74 / 68 // इति ईकारलुकं बाधित्वा स्वरादेशो वृद्धिः सिद्धयति / शापकमस्य वृद्धिसूत्रस्य अवर्णेवर्णस्येत्यस्मात् प्राग्विधानम् / एतन्यायाभावे अवर्णवर्णस्येत्यस्मात् प्रागेव वृद्धिसूत्रविधानेन परत्वात् प्रथमं वृद्धौ श्रायमित्यादि सेत्स्यति तथापि यत्प्राविधानं वृद्धिसूत्रस्येत्येतन्न्यायं द्योतयति / अस्याप्यनित्यत्वं नानिष्टार्था शास्त्रप्रवृत्तिरित्यत्र वक्ष्यते // 50 // आदेशादागमः // 51 // यथा अर्पयतोत्यत्र ऋधातोर्णी आदेशरूपां वृद्धि बाधित्वा प्रथमं प्वागमे
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