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खाली हैं / दूसरों की आंखें...धन-पद-प्रतिष्ठा / कन्फ्यूशियस ने कहा : जुआघर और मरघट का अवलोकन करो / यादव वंश के परम शिखर हैं कृष्ण / पांडव वंश का शिखर है अर्जुन / धीरे-धीरे कृष्ण अर्जुन को उसके खुद के निकट ला रहे हैं / कस्तूरी कुंडल बसै / समस्त विधियों का निष्कर्ष-बोध : जिसे आप खोज रहे हैं, वह आप ही हैं / खुद को कैसे खोजिएगा / मुल्ला नसरुद्दीन का अपने गधे पर सवार हो कर गधे को ही खोजने निकलना / रुकने पर स्वयं का बोध / गति बढ़ने के साथ-साथ आत्म-अज्ञान का गहरा होना / अनेक प्रतीक बता कर अंत में कहते हैं : अर्जुन, तेरे भीतर हूं मैं / स्वयं के भीतर परमात्मा है-यह स्वीकार करना सर्वाधिक कठिन / शरीर बाहर है-मन भी बाहर है / स्वयं के भीतर परमात्मा नहीं दिखा, तो कहीं न दिखेगा। अर्जुन, अपने भीतर देख / गुप्त रखने योग्य भावों में मौन हूं / दूसरों को प्रभावित करने में उत्सुक व्यक्ति ध्यान में, मौन में न जा सकेगा / दूसरों की चिंता ही छूट जाए / अपने मौन को छिपाने के लिए बायजीद के गुरु का अनाप-शनाप बकना / दूसरों के मंतव्यों की चिंता न करना : इब्राहीम का नग्न हो स्वयं को जूता मारते हुए अपनी राजधानी में घूमना / भीतरी शोरगुल-जागते-सोते / मुल्ला का सपने में देवदूत से मोल-भाव करना / 'दूसरों को बातें बताना-प्रभावित करने की लालसा / अपने ही झूठ से प्रभावित मुल्लाः सांझ राजमहल में भोज है / प्रेमियों का पारस्परिक लेन-देन कल्पना के शिखर / प्रेम-विवाह-फिर सपनों का टूटना / स्वयं की प्रशंसा से गति में अवरोध / हमारे और सत्य के बीच शब्दों की दीवाल है / निःशब्द सौंदर्य । लाओत्सू का प्रातः भ्रमण और एक बकवासी मित्र का साथ / भाषा संसार में उपयोगी है—अंतर्यात्रा में बाधा है / शास्त्रज्ञान तत्वज्ञान नहीं है / सत्य का निजी अनुभव है तत्वज्ञान / आस्पेंस्की की गुरजिएफ से पहली भेंट / आस्पेंस्की को बोध हुआ : मैं कुछ भी तो नहीं जानता / अज्ञान से भी ज्यादा भटकाता है-उधार, तथाकथित ज्ञान / उपनिषदों में कहा है : ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं / स्वयं को अज्ञानी स्वीकार करना कठिन है / तीन अनपढ़ ग्रामीण फकीरों की प्रार्थना हे प्रभु! हम तीन, तुम तीन; हम पर कृपा करो / शास्त्र और अधिकृत प्रार्थना-अनुभव के लिए अनिवार्य नहीं / परमात्मा एक अनुभव है | अज्ञान छोड़ना-फिर ज्ञान भी छोड़ना।
मंजिल है स्वयं में ... 231
ईश्वर और अस्तित्व दो नहीं हैं / अस्तित्व शब्द में भाव की कमी है / ईश्वर शब्द में भाव है, दिशा है, जीवंतता है / ईश्वर को बाहर खोजने की भूल / जो निकटतम है, स्वयं के भीतर ही है-उसका बोध कठिन / बोध के लिए अंतराल जरूरी / परमात्मा से अलग होना असंभव / मछली को सागर का बोध नहीं होता / परमात्मा दूर होता, अलग होता, तो हम उसे खोज ही लेते / दूरी होती, तो रास्ता भी बनाया जा सकता था / स्वयं में होने के लिए रुकना जरूरी / परमात्मा की निरंतर मौजूदगी / दो नहीं हैं, दूरी नहीं है / परमात्मा को खोने का कोई उपाय नहीं / मैं ही है या तू ही है / खोज की व्यर्थता से रुकना घटित / न कुछ पाने को है, न कुछ खोजने को है / परमात्मा की विभूतियां अनंत हैं / अपरिभाष्य चीजें / सब अपरिभाष्य चीजों का जोड़ परमात्मा है / व्याख्या नहीं अनुभव संभव है / सौंदर्य क्या है / जी.ई.मूर की पुस्तकः प्रिंसिपिया इथिका / गणितज्ञ आइंस्टीन और कवयित्री पत्नी का संवाद / सागर-लहर-संबंध / शाश्वत है-पन / लहरों के नीचे डुबकी-सागर से मिलन / शिखर अनुभवों में परमात्मा की निकटता / परमात्मा को सीधे झेलना कठिन है / परमात्मा की आंशिक अभिव्यक्तियां-विभूति, कांति और शक्ति के रूप में / अनुभव से यात्रा करके शक्ति ऐश्वर्य बनती है। वृद्धावस्था का ऐश्वर्य / शक्ति का आभा बनना / काम-ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन / आभा-मंडल/ जीवन ऊर्जा का विस्तार / युवा कांतिवान हो / गुरुकुलों में युवकों को कांति की कला सिखाना / युवाशक्ति का सृजनात्मक रूपांतरण / छिद्रों से ऊर्जा का बिखरना / ब्रह्मचर्य का अनूठा सौंदर्य / निष्प्रयोजन प्रश्नों की व्यर्थता / यह जगत ईश्वर का अंशमात्र है / परमात्मा की योग-माया से निर्मित है यह जगत / सम्मोहन का जादू / परमात्मा के भाव मात्र से, विचार मात्र से जगत का निर्माण / जगत की मूल इकाई पदार्थ नहीं-विचार है / समस्त चाहों का एकजुट बल परमात्मा के लिए / परमात्मा की खोज ही जीवन का केंद्र हो / प्रतीक इशारे हैं / सहारों का उपयोग-यात्रा के लिए / बोध कथाः बोकोजू का बुद्ध की काष्ठ प्रतिमा जलाना-सर्दी दूर करने के लिए / प्रतीकों के पार।