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अपनी छोटी बहिनों से कहूँगा सास-ससुर पद पंकज पूजा या सम नारी धर्म नहीं दूजा, सास-ससुर की सेवा प्रभु की पूजा है, सास-ससुर का सम्मान आपके अपने कुल और धर्म का सम्मान है । यह सास ही आपकी वह देवी है, जिसकी कोख में आपका सुहाग पला है । जैसे आप अपने सुहाग की रक्षा के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं, ऐसे ही जिनकी कोख में आपका सुहाग पला है, जिन्होंने आपके सुहाग को पाल-पोसकर बड़ा किया है, उनकी सेवा करना, उनकी इज़्ज़त करना आप अपने लिए व्रत ही समझें ।
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हमने देखा : एक महिला हमारे पास आई और कहने लगी- गुरुजी ! थोड़ा पानी मिलेगा ? हमने कहा - अवश्य । उसने दो बाल्टी पानी लिया और हमारे स्थान के बाहर जाकर एक बूढ़ी माँजी के कपड़े बदलने लगी। उसके कपड़े गंदे हो गए थे। उसने कपड़े बदले और गंदे कपड़े धोने लगी । उसने बताया कि माँजी की तबियत ठीक नहीं है । उन्हें दस्त लग जाती है, उन्हें पता भी नहीं चलता । उस बहिन को माँजी की तबियत से सेवा करते हुए देख हमने पूछा - बहिन ! क्या यह आपकी माँ है ? उसने कहा - माँ से भी बढ़कर है । हमने पूछा- माँ से बढ़कर से मतलब ? कहने लगी- यही वह देवी है जिसकी कोख से मेरा सुहाग पला है ।
हमने बहिन के नज़रिये को साधुवाद दिया। क्या आप अपनी सास के लिए, अपने ससुर के लिए ऐसा कोई सकारात्मक दृष्टिकोण बना सकती हैं ?
जब हम प्रेम की बात कर रहे हैं तो प्रेम की पहली अनिवार्यता है कि आप एक-दो-पाँच जितने भाई हैं, उन भाइयों में परस्पर प्रेम हो । एक भाई के दो हाथ होते हैं, दूसरे भाई के भी दो हाथ होते हैं, अगर दो भाइयों में प्रेम हो तो उनके चार हाथ महज चार हाथ नहीं होते, बल्कि उनके चार हाथ चारभुजा नाथ हो जाया करते हैं। भाई अगर जुदे - जुदे हों तो एक और एक दो होते हैं, पर दो भाई साथ हों, सुख दुख में सहयोगी हों, तो वही दो भाई एक और एक ग्यारह हो जाया करते हैं। अगर दो भाई आपस में बोलबर्ताव भी न करते हों तो भले ही एक छत के नीचे क्यों न रहते हों उनका घर-घर नहीं रहता, श्मशान और कब्रिस्तान बन जाया करता है । जैसे कमरों में लोग रहते हैं ऐसे ही कब्रों में भी लोग रहते हैं, पर कब्रों में रहने वाले लोग आपस में बोलते नहीं, एकदूसरे के काम आते नहीं । अगर यही हालत कमरों में रहने वाले लोगों की है तो फिर सोचो कि कमरों में और कब्रों में फ़र्क़ ही क्या रह जाता है !
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घर को कैसे स्वर्ग बनाएं - 2
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