Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 91
________________ जीवन की धन्यता के लिए कुछ न किया, उसका बुढ़ापा सूना है, पर जो मंदिर-दर्शन, गुरु-सान्निध्य, सत्संग-प्रेम और दूसरों की भलाई के लिए समर्पित रहा उसका तो बुढ़ापा भी सोना ही है। बुढ़ापे में बाल सफेद हो जाते हैं। सफेद बाल निवृत्ति के प्रतीक हैं । बाल सफेद हो गए, यानी भोग और भोजन पूरा हुआ। अब नई यात्रा शुरू करें। अब प्रभु के रास्ते पर चले आओ। अब गाड़ी छटने वाली है। अब संसार के पचडे छोड़ो और स्वाध्याय, सत्संग, प्रभु-भजन और आत्म-ध्यान में खुद को समर्पित करो। सोचो, अगर अब भी न किया तो क्या मरने के बाद करोगे? दो मुट्ठी राख होने के बाद? बुढ़ापा तूने लिया रे जकड़ी।। हाथ में आ गई लकड़ी॥ बचपन खेला राग-रंग में, चढ़ी ज़वानी अंग-अंग में। भोग और भोजन के संग में, उलझ गई रे मकड़ी॥ कोड़ी-कोड़ी दमड़ी जोड़ी, मगर धरम से ममता तोड़ी। अब तो हाथ-पाँव भी काँपें, कमर गई है अकड़ी॥ रोटी खाऊँ तो पचती नहीं है, खिचड़ी खाऊँ तो रुचती नहीं। रोग ने घेरा, मोह अनेरा, चिंता बढ़ गई तकड़ी॥ दिन में छोरे करते हाँसी, रात-रात भर चलती खाँसी। दाँत भी टूटे, मोह न छूटे, खा न सके अब ककड़ी॥ प्रभु को भूला, अधर में झूला, मोह-माया में पकड़कर फूला। पर अब बाजी जाए हाथ से, जम ने चोटी पकड़ी॥ जिस पलने में खेले वो लकड़ी, कुर्सी, माचा, फेरा लकड़ी। हाथ में लकड़ी, साथ में लकड़ी, अर्थी होगी लकड़ी॥ गाड़ी छूट रही है पगले, चढ़ना है तो अब भी चढ़ ले। प्रभु को भज ले, सत्संग कर ले, छोड़ दे पचड़ा-पचड़ी॥ राम नाम ही एक सत्य है, बाकी सारी बात खपत है। 'चन्द्र' प्रभु के चरण-कमल में, रख लो अपनी पगड़ी॥ अपने बूढ़े तन में भी मन को मज़बूत करो और शेष जीवन को पूरा 90 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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