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फिर सबसे छोटा बेटा तैयार होता है, मृत्यु उसे ले जाने के लिए आगे बढ़ती है तो वह कहता है, मौत! बस एक मिनट के लिए ठहरो, तुम तो जानती हो मैं कौन हूँ ? मैं वही बेटा हूँ, जो दस बार इस घर में जन्म लेकर बचपन में ही मरता रहा हूँ लेकिन आज मरने से पहले पिता से एक सवाल ज़रूर करना चाहूँगा। तब उसने पिता से पूछा, 'पिताजी! आपने एक हजार वर्ष का जीवन जिया है, लेकिन क्या अभी तक तृप्त हो पाए हैं ?'
पिता ने कहा, 'बेटा, यह जानने के बाद कि तुम ही वह मेरे पुत्र हो जिसने दस बार अपना जीवन गंवाया, यही कहूँगा कि सच्चाई तो यह है कि एक हजार वर्षों के भोगोपभोग के बाद भी स्वयं को अतृप्त अधूरा ही समझता हूँ।'
छोटे बेटे ने कहा, 'मृत्यु, मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया। अब मैं तुम्हारे साथ आराम से चल सकूँगा। यद्यपि पहले भी नौ बार जा चुका हूँ लेकिन तब मेरे मन में थोड़ी दुविधा रहती थी कि मैं तो जीवन जी भी न पाया और जाना पड़ रहा है, लेकिन आज मन में संतोष है कि जो पिता एक हज़ार साल का जीवन जीकर भी असंतुष्ट और अतृप्त रहा तो मैं सौ साल जीवित रहकर भी कौन-सा तृप्त हो जाऊँगा? अब मैं तुम्हारे साथ बिना शंका-संदेह के प्रेम से चलूँगा' और कहते हैं तब मृत्यु ने युवा बेटे को छोड़ दिया और ययाति को लेकर चली गई, क्योंकि जो व्यक्ति तृप्ति का अहसास कर चुका है मौत उसे छू नहीं पाती। ___ वृद्धावस्था में तीसरी समस्या पारिवारिक होती है, क्योंकि परिवार में बूढ़े लोगों की इज़्ज़त करने वाले कम ही लोग होते हैं। जैसे बैल के बूढ़े होने पर किसान उसे कसाईखाने भेज देता है उसी तरह आजकल लोग अपने बुजुर्गों को वृद्धाश्रम भेजना पसंद करते हैं, क्यों? क्योंकि बुज़ुर्ग घर में हद से ज़्यादा हस्तक्षेप शुरू कर देते हैं। बात-बात में टीका-टिप्पणी, टोका-टोकी करते रहते हैं। मैं कहना चाहूँगा कि अगर बुजुर्ग लोग अधिक बोलने की आदत से छुटकारा पा लें, जुबान को नियंत्रित कर लें तो घर का कोई भी सदस्य उन्हें अवांछित नहीं समझेगा। धन के कारण नहीं अपितु परिवार में उचित संतुलन न होने से परिवार टूट जाया करते हैं। इसलिए पारिवारिक संतुलन बनाए रखें। बुज़ुर्ग परिवार के साथ सामंजस्य बनाए रखें, समस्याएँ स्वयं सुलझ जाएँगी। बूढे-बुजुर्गों को चाहिए कि वे नपा-तुला बोलें अथवा मौन रहें। बेटे-बहू के
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