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सकता है।' महावीर इन्द्र की सहायता लेने से इन्कार कर देते हैं और अपने ही बलबूते पर साधना करते हैं। बुद्ध की प्रेरणा है, 'अप्पदीपो भव'। अपने दीप खुद बनो। दूसरों के दीये दिखने में अच्छे होते हैं, किंतु आख़िरकार तो वे ही दीपक काम आएँगे, जो आपने ख़ुद ने बनाए हैं, जलाए हैं।
जो अपने बलबूते पर साधना को फलीभूत नहीं कर सकते वे ही घाटघाट भटककर और गुरुओं के पास जाकर अपना मत्था टेकते रहते हैं। राम ने रावण के विरुद्ध युद्ध का शंखनाद किया। रावण अपार शक्तियों का स्वामी था। कहते हैं कि एक बार उसने अपनी काँख में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को दबा लिया था। कुबेर उसकी सेवा में था, ऐसे रावण को चुनौती देना क्या सामान्य बात थी? रावण के पास राक्षसों की सेना थी और राम के पास बंदरों की सेना, पर इसके बावजूद राम को रावण से युद्ध करना था। रीछ, भालू, बन्दरों को लेकर राम ने रावण की सोने की लंका पर चढ़ाई कर दी। ज़रा सोचिए कि वह क्या था, जिसके बलबूते पर राम रावण पर चढ़ाई कर सके? वह था आत्मविश्वास, जिसके आधार पर, जिसकी ताक़त के सहारे राम रावण पर हमला करते हैं और विजयश्री का वरण भी करते हैं।
जीत उन्हीं की होती है जिन्हें भरोसा है कि वे जीतेंगे और अन्ततः वे जीत ही जाते हैं। महज़ राम-राम जपने से नैया पार नहीं लगती, बल्कि रामायण से प्रेरित होकर आत्म-विश्वास जगाने से ज़रूर नैया पार लग जाती है। ज़रा आप सोचें कि आप किस नाम, कुल, गौत्र और माता-पिता की संतान हैं और आपने ऐसा क्या काम किया है कि आपका समाज और आपके मातापिता आप पर गर्व कर सकें?
कोलम्बस नई दुनिया की खोज के लिए निकला था। उसके सारे साथी लम्बी समुद्री यात्राओं से थक-ऊबकर वापस चले गये। वह भी छत्तीस बार यात्राएँ कर चुका था, लेकिन उसने हार नहीं मानी और छत्तीसवीं बार वह भारत तो न खोज सका, लेकिन उसने अमेरिका को ज़रूर खोज निकाला। यह क्या था? केवल साहस और आत्म-विश्वास तथा दृढ़ निश्चय और खोज निकालने का जज्बा । वह कौनसी ताक़त है जिसके कारण व्यक्ति समुद्र की गहराइयों में उतर जाता है ? आज तो दिशासूचक यंत्र है, लेकिन उस समय समुद्री रास्ते से किसी देश को खोज निकालना ज़बरदस्त दुस्साहस का कार्य 126
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