Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 133
________________ समझते हैं तो आप हीनभावना से ग्रस्त हैं। अगर आपको लगता है कि आप कुछ नहीं कर सकते तो आप हीनभावना से पीड़ित हैं। कोशिश कामयाबी का आधार है। पहले चरण में ही हार न मानें। पहला चरण तो आत्म-विश्वास से भरा हुआ होना चाहिए। कोशिश ही कामयाबी का द्वार है। एक बात और, अपने जीवन में आलोचना सहने की आदत डालिये। कोई आपकी आलोचना करे तो परवाह मत कीजिए। दुनिया में किस आदमी की आलोचना नहीं हुई? जो बातों से घबरा जाएगा वह कभी भी अपनी मौलिक स्थापना नहीं कर पाएगा। बनी हुई लकीरों पर मत चलो। लीक पर चलना सुरक्षित तो होता है लेकिन उसमें अपनी मौलिकता नहीं होती। अपने पुरुषार्थ से अपने रास्ते ख़ुद बनाओ। कुछ अलग करने की उमंग रखें, तभी आप आगे बढ़ने में सफल हो सकेंगे। देखो कि आलोचना में कौनसी अच्छी बात है, उसे अपना लो, लेकिन अपने संकल्प से पीछे मत हटो। जो आज आलोचना कर रहे हैं, कल वे ही जब आप लक्ष्य हासिल कर लेंगे तो तारीफ करने को तत्पर हो जाएंगे। जब तक कोई चीज लक्ष्य और मंजिल तक नहीं पहुँच पाती है तभी तक उसकी आलोचना होती है और लक्ष्य हासिल होते ही लोग करवट बदल लेते हैं, प्रशंसा करने में जुट जाते हैं। दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त हो जाते हैं। आज जो तुम्हें पचास रुपये उधार देने से कतराते हैं, कल वे ही तुम्हें मुकाम पर पहुँचा देख कर लाख रुपया लगाने को तत्पर हो जाते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अब उनकी पूँजी तो कम से कम सुरक्षित ही रहेगी। ___ आलोचना तो महावीर की भी हुई थी, नहीं तो कानों में कीलें क्यों ठोकी जातीं? आलोचना तो राम की भी हई थी, नहीं तो सीता जी को वनवास देने की क्या जरूरत थी? जीसस की भी आलोचना हुई थी तभी तो उन्हें सलीब पर चढ़ना पड़ा। आलोचना के कारण ही सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा। मंसूर की आलोचना में उनके हाथ-पाँव काट दिये गए। आलोचना से घबराएँ नहीं। चलेंगे तो गिरेंगे भी। जो गिरने से डरता है वह कभी चलना नहीं सीख सकता। दो मित्रों ने संकल्प लिया कि प्रतिवर्ष होने वाली तैराकी प्रतियोगिता में वे भी भाग लेंगे। दोनों को तैरना नहीं आता था। फिर भी संकल्प लिया कि तैरना 132 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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