Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 131
________________ शायद उसे देखकर ही हम अपनी नज़र घुमा लें, लेकिन उसकी पत्नी बेहद खूबसूरत है। इतनी सुंदर कि देखते रह जाएँ। एक बार मैंने उनसे पूछा, (बहुत करीबी है इसलिए पूछ सका), बहिन, एक बात बताओ।' 'फरमाइये' उसने कहा। मैंने कहा, 'एक बात बताओ बहिन आपकी पहली शादी है या दूसरी'। 'पहली ही शादी है', क्यों?' उसने सवाल किया। मैं थोड़ा चौंका, 'पहली शादी और इतना बदसूरत पति।' मैंने कहा, 'क्या शादी से पहले माता-पिता ने लडके को देखा नहीं था?' 'यह शादी माँ-बाप ने नहीं की, यह मैंने खुद की है, हमारी लव-मैरिज है', उसने बताया। अब तो मैं और अधिक चौंक गया, यह तो ग़ज़ब हो गया, फिर भी कहा, 'बहिन, बात समझ में नहीं आई। आप तो कह रही हैं कि यह लव-मैरिज है, ऐसा कैसे हो सकता है?' बहिन ने बताया, 'हम लोग कॉलेज में पढ़ते थे, पढ़ाई के दौरान ही मैं इनके सम्पर्क में आई। कॉलेज में दो हज़ार विद्यार्थी थे, आप सुनकर ताज्जुब करेंगे कि उन दो हज़ार विद्यार्थियों के बीच यही एक ऐसे इन्सान थे जिनके गुणों ने, सीरत और स्वभाव ने मुझे प्रभावित किया। मैंने महसूस किया कि व्यक्ति रंग से काला है तो क्या हुआ किन्तु यह अपने चरित्र और गुणों से तो महान् है और मैंने शादी का प्रस्ताव रख दिया। यह मेरी पसंद है, मैंने स्वयं ही इनसे शादी की है। हकीकत तो यह है कि मैंने इनके रंग-रूप से नहीं बल्कि इनके गुणों से शादी की है।' मैंने सुना और खूब आनन्दित हुआ। थोड़ी देर बाद उसके पति भी हमारे पास आए। बातें चल रही थीं, तभी मैंने उनसे भी पूछा, 'एक बात बताएँ आपका ऐसा काला रंग है, मोटी नाक और चेचक के दाग हैं, कभी आपको गिल्टी फील नहीं हुई।' उन्होंने कहा, 'बचपन में गली-मोहल्ले के सारे बच्चे मुझे 'कालूकालू' कहकर पुकारते थे। जब वे मुझे कालू कहते तो मुझे बहुत तकलीफ़ होती थी। तभी उन दिनों मैंने यह संकल्प कर लिया था – 'ए कालू, तू अपना रंग तो नहीं बदल सकता, लेकिन अपने जीने के ढंग को तो जरूर बदल सकता है। बस तब मैं अपनी शिक्षा और जीवन के प्रति गंभीर हो गया और वह भी इतना कि आज मैं शहर का सम्मानित डॉक्टर माना जाता हूँ। लोग मेरे चेहरे को नहीं देखते, वरन् मेरी प्रेक्टिस, मेरी पारंगतता, मेरे अच्छे गुणों से प्रभावित होकर मेरे पास आया करते हैं। 130 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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