Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 123
________________ हरी सब्जी नहीं थी, तो इसका गम मत कीजिए, क्योंकि दुनिया में ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें आज खाने को सूखी रोटी भी नसीब न हुई हो। आपकी स्थिति उनसे तो बेहतर है। मन को छोटा नहीं, विश्वास भरा बनाइए। अपनी हर साँस को आशा और विश्वास से लीजिए । प्रकृति ने हमें कुछ करने के लिए जन्म दिया है, इसलिये अपने मन को कभी कमजोर और अपाहिज न होने दीजिए। हैवी वेट उठाने वाले दो पहलवानों कहा जाता है और दूसरा जीत जाता है। क्या कभी आपने इसका कारण सोचा है ? दोनों अपनी कला में माहिर होते हैं, दोनों का शरीर बलिष्ठ होता है फिर भी जीत किसी एक को ही मिलती है। जीतता वह है जिसके मन में जीतने जब होता है। अपने शरीर के बलवान होने का जिसे सिर्फ़ अहसास होता है वह मन की मज़बूती के बग़ैर हार जाता है । आज हमारे सामने शारीरिक और सामाजिक समस्याएँ उतनी नहीं है जितनी कि मानसिक समस्याएँ हैं क्योंकि मनुष्य मन से खिन्न, निराश और नपुंसक है। मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जो भले ही अपाहिज और विकलांग रहे हों, पर उन्होंने जीवन के विकास के सर्वोच्च शिखरों को छूआ है। याद कीजिए उस अंधी, गूंगी और बहरी महिला को जिसने कन्या के रूप में जन्म लिया और जो मात्र दो-ढाई वर्ष की उम्र में निमोनिया से पीड़ित होकर अपनी वाणी, श्रवण - शक्ति और नेत्रज्योति गँवा बैठी । क्या आप ऐसी लड़की का कुछ भविष्य देख सकते हैं ? लेकिन सलीवान जैसी शिक्षिका के मिलने के कारण वह अंधी, गूंगी, बहरी लड़की विकास के ऐसे द्वार खोलती है कि आज हम उसे श्रद्धा से याद करते हैं और उसकी लिखी हुई पुस्तकों का अध्ययनअध्यापन करते हैं। वह आदरणीय महिला थी हेलन केलर, जिसने जन्म से जीवन का कोई स्वाद नहीं चखा किंतु उसने ऐसी अद्भुत पुस्तकों की रचना की जो महान् चिंतकों और दार्शनिकों के लिए भी प्रेरणास्तंभ हैं। अपने ही देश के एक संगीतकार नेत्रहीन हैं, लेकिन जिनके संगीत ने दुनिया भर में धूम मचा दी है। उनके संगीत से सजी फिल्मों और टी.वी. धारावाहिकों की सर्वत्र चर्चा होती है । वे हैं रवीन्द्र जैन जिन्होंने दुनिया को बता ही दिया कि अभावों में पलकर, नेत्रहीन होकर भी जीवन की ऊँचाइयों का स्पर्श किया जा सकता है। जो अपने जीवन में प्रबल पराक्रम और पुरुषार्थ करता है वह 122 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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