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भोजन बनाएँ तो बघार में हींग भी डालें । इस तरह की चीज़ें शरीर में उपस्थित वायु, पित्त और कफ नाशक होती हैं । प्रतिदिन दाल भी बनाएँ । आलस्य या कंजूसी न करें कि कौन बनाए, कुछ भी खा लेंगे। नहीं, केवल पेट ही नहीं भरना है, बल्कि पूरे शरीर को एनर्जी देनी है। खाने में दाल, सब्जी, सलाद ज़रूर बनाएँ, खाने में दही भी लें या खाना खाकर एक गिलास छाछ ज़रूर पीएँ। भोजन के बाद छाछ पीना अमृत के समान है पर खाना खाते ही पानी पीना ज़हर के समान है । खाना खाने के एक घंटा बाद ही पानी पीने की आदत डालें ।
सुबह-सुबह दूध पीएँ । खाली पेट चाय न पीएँ। चाय पीना ही है तो दोपहर में एक कप पीएँ । सूखे मेवों का प्रयोग करें - अगर सम्भव हो तो । गर्मी के दिनों में मेवा पहले पानी में दो-चार घंटे भिगोकर रखें। बाद में उपयोग करें। वैसे हर रोज़ दस बादाम रात को भिगोकर सुबह चबा-चबाकर या पीसकर खाना दिमाग़ी सेहत के लिए फ़ायदेमंद टॉनिक है ।
भोजन ही ब्रह्म है, अन्न ही प्राण है, जीवन का आधार है। सौ काम छोड़कर भोजन कीजिए और हज़ार काम छोड़कर स्नान कीजिए । यहाँ अपने देश में खूब गर्मी होती है अतः लोग रोज़ाना नहा लेते हैं, किन्तु विदेशों में जहाँ ठंड ज़्यादा पड़ती है, सुना है कि सात-सात दिन तक लोग नहाते ही नहीं हैं । वैसे स्नान कर लेने से केवल शरीर शुद्धि ही नहीं होती है, अपितु शरीर का प्रमाद दूर होता है और तन - मन में ताज़गी आती है ।
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इसके अलावा, घर में सामूहिकता बनाए रखें, मिलजुलकर काम करें I एक पर ही सारा वज़न न डालें। यदि एक पर ही भार रहेगा तो उसकी कमर टूट जाएगी। मिलजुलकर खाना बनाने से काम भी जल्दी ख़त्म हो जाएगा और खाने का परिणाम भी अच्छा निकलेगा । जिन भावों से भोजन बनाएँगे, भोजन भी अपना वैसा ही परिणाम देगा । आप यदि हिंसा का भाव लिए हुए भोजन बनाएँगे तो भोजन खाने वाला हिंसक प्रवृत्ति का हो जाएगा, वहीं यदि प्रेम, शांति अथवा प्रभु- सुमिरन करते हुए भोजन बनाएँगे तो आपका भोजन भी लोगों पर वैसा ही रंग लाएगा।
ऐसा हुआ, एक दिन सीताजी खाना बना रही थीं और हनुमान जी से
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