Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 114
________________ तो कुदरत का बहुत बड़ा करिश्मा है, बहुत बड़ी दौलत है। इसे संजोइए और इसे स्वस्थ रखिए। लोग लाल बत्ती वालों के पीछे घूमते रहते हैं, जबकि सारे मंत्रालय हमारे पास हैं। पाँव यातायात-मंत्री हैं, हाथ श्रम मंत्री है, पेट खाद्य-मंत्री है, हृदय गृह-मंत्री, श्वास स्वास्थ्य-मंत्री, आँखें दूरसंचार मंत्री, जीभ सूचनाप्रसारणमंत्री, कान कानून-मंत्री, दिमाग शिक्षा मंत्री, प्राण प्रधान-मंत्री और आत्मा राष्ट्रपति है। सभी तो हममें समाया हुआ है। आप अपने शरीर के ख़ज़ाने को समझें। शरीर को नश्वर कहना छोड़ें। जिनका शरीर बेडौल हो गया है, पेट बाहर आ गया है, कूल्हे निकल रहे हैं, वे अपने शरीर के प्रति थोड़े सचेत हो जाएँ तो सभी स्वस्थ, निरोगी और छरहरे हो सकते हैं। हमारे स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारे रसोईघर से भी है। देख लीजिए कि आपके रसोईघर में कही छिपकली तो नहीं चल रही है। खिडकी, दरवाजों में मच्छरजालियाँ लगी हैं या नहीं लगी हैं? मच्छर, मक्खियाँ तो नहीं भिनभिना रही हैं? सम्भव है रसोईघर में जो सामान रखा है, उसके आसपास कॉकरोच चलते हों। रसोईघर हमारे स्वास्थ्य का नियंत्रणकक्ष है। रसोईघर अपने आप में सम्पूर्ण चिकित्सालय है, आरोग्यशास्त्र है। रसोईघर अग्निदेव को पूजित पोषित करने का मंदिर है। चाहे श्रावण की तीज हो या दीपावली की अमावस, होली का दिन हो या रक्षाबंधन की पूनम, हर त्यौहार को मनाने की वही शरणस्थली है। हम कितनी भी जीमणवारियों में जीम कर क्यों न आ जाएँ, पर अन्ततः अपने ही घर की रसोई की शरण में आना होता है। आख़िर सबसे बड़ा देवता तो अन्न देवता ही है। इस अन्न देवता का निवास हमारे रसोईघर में होता है। रसोईघर में जो चीज जिस भाव से बनेगी, आगे वैसा ही परिणाम निकलेगा। शुभ भाव से रसोई बनाने का परिणाम भी अच्छा निकलेगा। रोते, झींकते, जैसे-तैसे खाना बनाओगे तो उसका परिणाम भी वैसा ही आएगा। आपका बच्चा चिड़चिड़ करता है, दिन भर रोता रहता है तो यह न समझें कि उसका स्वभाव चिड़चिड़ा है बल्कि उसे खाना ही उस तरह का मिल रहा है। खाना बनाने में मन नहीं लगता, देवरानी-जेठानी में झगड़ा है, उखड़े मन से खाना बनाया जा रहा है तो उसका प्रभाव भी वैसा ही होगा। घर में मिलजुलकर खाना बनाएँ तो घर वालों 113 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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