Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 93
________________ साथ ही मृत्यु तय हो गई है फिर आप जन्मते ही मर जाते हैं या सत्तर वर्ष के होकर मरते हैं कोई फ़र्क नहीं पड़ता। आपका जन्म लेना ही मरने के लिए पर्याप्त है। बूढ़े व्यक्ति का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है, क्योंकि अब उसके नियंत्रण में कुछ नहीं रहता। छोटी-छोटी बातों पर झुंझला उठते हैं। बूढ़ों को जितना गुस्सा आता है उतना जवानों को नहीं आता। क्योंकि उनके हाथ-पाँव चलते नहीं, मस्तिष्क की शक्ति क्षीण हो गई, सहनशीलता रहती नहीं है, तो एक मिनट में ही पारा चढ़ जाता है। वे चाहकर भी अपना मोह छोड़ नहीं पाते। हम सभी को राजा ययाति की कहानी मालूम है जिसने अपने जीवन के सौ वर्ष पूर्ण कर लिए थे। इन सौ वर्षों में सौ रानियों के साथ ऐश्वर्य का उपभोग किया था। उनके सौ-सौ राजमहल और सौ ही पुत्र थे। जब सौ साल पूर्ण हो गए तो मृत्यु उन्हें लेने आ पहुँची और यमराज बोले, 'चलो ययाति, तुम्हारा आयुष्य पूर्ण हो गया।' ययाति ने कहा, 'अरे, मृत्यु तुम तो बहुत जल्दी आ गई। अभी तुम जाओ, थोड़े दिन बाद आ जाना। अभी तो जीवन के कई इन्द्रधनुष देखने बाकी हैं। ' मृत्यु किसी के द्वार आ जाए तो खाली हाथ वापस नहीं जाती, सो मृत्यु ने कहा, राजन् अगर तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे परिवार का कोई व्यक्ति मरने को तैयार हो जाए तो तुम्हें सौ वर्ष की आयु और मिल सकती है। राजा ने अपने पुत्रों की ओर देखा। निन्यानवें पुत्रों ने तो मरने से इंकार कर दिया, पर सबसे छोटा पुत्र मरने को तैयार हो गया। उसने कहा, 'मेरे मरने से अगर मेरे पिता को सौ वर्ष की आयु मिलती है तो मैं यह कुर्बानी देने को तैयार हूँ।' मृत्यु छोटे पुत्र को ले जाती है। ययाति दो सौ वर्ष की आयु पा लेता है। पुनः सौ वर्ष बाद मृत्यु का पदार्पण होता है, पुन: वही नाटक होता है, पुनः सबसे छोटा बेटा अपनी आहुति देता है। इस तरह दस बार राजा बार-बार बेटे की क़ीमत पर एक हज़ार वर्ष जी लेता है, लेकिन उसकी कामनाएँ-तृष्णाएँ अपूर्ण ही रहती हैं। वह चाहता है कि कुछ और उपभोग कर ले, राजसत्ता भोग ले।मौत कहती है राजन् बहुत जी लिए, पर राजा ने कहा, तुम अगर मेरे बेटे से खुश हो जाती हो तो मेरे सौ बेटे हैं। निन्यानवें से काम चला लूँगा। दसवीं बार 92 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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