Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 42
________________ ओर किसी अभिनेत्री का फोटो रखा । चारों चीज़ें एक पलंग पर रख दीं और अपने पुत्र से कहा, 'जा बेटा, जो तुझे पसंद हो वह तू ले आ ।' बेटा गया, उसने चारों चीज़ों को ध्यान से देखा । फिर सबसे पहले उसने प्याली उठाई और पी गया। पास में देखा कि अभिनेत्री का फोटो है- उसे उठाया और जेब में रख लिया। कलम भी जेब के हवाले कर दी और रामायण और गीता के गुटके हाथ में उठाकर चला गया । पिता ने देखा और जान लिया कि यह तो बड़ा होकर नेता ही बनेगा । नेता पीते भी हैं, जरूरत पड़ने पर रामायण और गीता का उपयोग भी कर लेते हैं, अभिनेत्रियों को भी इकट्ठा कर लेते हैं और कलम भी झूठी - सच्ची चलाते रहते हैं । आज बच्चों की जो नई पौध तैयार हो रही है वह कुछ इसी प्रकार की है। मैं इन तैयार होती हुई कोंपलों को कुछ ऐसे कर्त्तव्य और फ़र्ज़ निवेदन कर रहा हूँ जिससे वे अपना भावी जीवन सुधार सकें, सँवार सकें। कुछ कर्त्तव्य और फ़र्ज़ बड़ों से भी निवेदन करूँगा ताकि दोनों पीढ़ियाँ एक-दूसरे के नज़दीक आ सकें । आज बच्चों और बुजुर्गों में जो वैचारिक और व्यावहारिक दूरियाँ आ गई हैं उन्हें दूर करना पहली आवश्यकता है। दोनों ही जब अपने कर्त्तव्यों के प्रति गम्भीर होंगे तभी वे आने वाले कल का बेहतर निर्माण कर सकेंगे। सबसे पहले बुजुर्गों को ही अपने कर्त्तव्य समझने चाहिए। बुजुर्ग अतीत के उपसंहार हैं और बच्चे वर्तमान की भूमिका हैं। बुजुर्ग अपने अनुभवों से बच्चों के जीवन में रोशनी घोलें और बच्चे बुजुर्गों को घर का बरगद समझकर उनकी छाया में ख़ुद को पल्लवित करें । निश्चय ही, पंछी को उड़ना तो है ही, आज़ादी का जश्न तो मनाना ही है । पर आज़ादी की ओर वह अपने क़दम बढ़ाने के पहले बुजुर्गों की छत्रछाया में इतने परिपक्व हो जाए कि कठिनाइयों से जूझना सीख सके, मुश्किलों से हार न खा बैठे। यहाँ अलगअलग स्कूलों से आए हुए बच्चे भी बैठे हैं अतः मैं बच्चों से भी कुछ बातें निवेदन करूँगा, पर पहले बुजुर्गों से । बुजुर्गों को मेरी नसीहत है कि वे अपने बच्चों को जितना परिपक्व कर सकते हैं, अवश्य करें। बच्चों को घर का गमला न बनाएँ कि एक दिन पानी न मिले तो वे सूख जाएँ। बच्चों को ऐसा पहाड़ी पौधा बनाएँ कि वे खुद अपने बलबूते पर अपने आपको खड़ा कर सकें । आज अगर कोई बच्चा ग़लत 41 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146