Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 82
________________ सुश्राविका है। हमसे स्नेह रखती हैं, आदर भी करती हैं। उन्हें विवाह के पश्चात् सुदीर्घ समय तक संतान प्राप्ति नहीं हुई। वे हमसे बस एक ही बात कहतीं कि उन्हें संतान हो जाए ऐसा ही आशीर्वाद चाहिए। उन्हें अन्ततः पुत्र हुआ और वह बड़ा होने लगा। चौदह वर्ष का हो गया और उसे डेंगू बुखार हो गया। तबीयत ज़्यादा बिगड़ी, उसे दिल्ली ले जाया गया और कुछ समय बाद समाचार आया कि अस्पताल में उसका देहान्त हो गया। मुझे उस समय केवल एक ही विचार आया कि जिस चीज़ को भगवान नहीं देना चाहता उसे तुम किसी तरह प्राप्त भी कर लो तो भी उसका सुख तुम्हें नहीं मिल सकता। इसलिए सहज में जो मिल जाए उसमें आनन्द और न मिले तो भी ग़म नहीं। प्राप्त हो जाए तो भी प्रसन्न और प्राप्त न हो तो भी प्रसन्न। जिसमें इस तरह जीने की कला आ गई वही चिंतामुक्त और निश्चित जीवन जी सकता है। सम्मान मिले तो ठीक और कोई अपमान दे दे तो उसे अपने सम्मान की कसौटी समझिये। विपरीत वातावरण में आप अपने चित्त की सहजता को बनाए रखने में सफल हो जाते हैं तो यही आपके जीवन की वास्तविक सफलता है। अगर आप स्वयं को शांत और स्थिर चित्त समझते हैं तो मैं चाहूँगा कि कभी-कभी आपके साथ ऐसा घटित होता रहे जिससे आपकी शांति, समता, सहजता और समरसता की कसौटी होती रहे। ऐसा हआ, एक संत हुए भीखणजी। वे प्रवचन कर रहे थे कि भीड़ में से एक युवक खड़ा हुआ, उनके पास आया और उनके सिर पर दो-चार ठोले मार दिए। सारे लोग हक्के-बक्के रह गए। युवक को पकड़ लिया और पीटने को उद्यत हो गए। भीखणजी ने कहा-उसे छोड़ दो। लोगों ने कहा-यह आप क्या कह रहे हैं? भीखणजी ने कहा-जो हो गया सो हो गया, आप लोग उसे छोड़ दें। भीड़ ने कहा-'अरे, इसने आपको पीटा है, हम इसे सबक सिखाकर रहेंगे।' तब उन्होंने कहा-इसने मेरी पिटाई नहीं की थी, यह तो मेरा शिष्य बनने आया था और ठोंक बजाकर परख रहा था कि यह आदमी गुरु बनाने लायक है भी या नहीं। अरे, बाजार में चार आने की हंडिया लेने जाते हैं तो उसे भी ठोकबजाकर देखा जाता है कि काम की है या नहीं। और जब गुरु बनाना है तो यह साधारण काम नहीं है, जीवन भर की बात है। इसने मेरी केवल परख भर की है। 81 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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