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न करें। जो है, उसका आनंद लें। अरे, अगर दो दाँत टूट भी गए, तो क्या हुआ, तीस तो बाकी हैं। दो अंगुली कट गई तो क्या हुआ? आठ तो बाकी हैं। दो की याद में शेष को दरकिनार करना बाकियों का अपमान है।
चिंता की वजह क्या? ज़्यादा पैसा, जल्दी पैसा, किसी भी ज़रिये से पैसा। यही है दुःख और चिंता का कारण। ज़्यादा हाय-हाय मत करो। शांति से जिओ। कमाई करो, पर गलाई मत करो। चिंता अगर करनी ही है तो ख़ुद के कल्याण की करो। प्रभु-भक्ति की चिंता करो, धर्म-आराधना की चिंता करो। बच्चों की ज़्यादा चिंता मत करो। बीवी की ज़्यादा चिंता मत करो। वे कोई लंगड़े-लूले नहीं है, जो हम उनके लिए ऐसी-वैसी चिंता करते रहें। हमसे बीबी-बच्चों की जो सेवा सहज में बन जाए, कर लो, बाकी मस्त रहो।
चिंता को कम करने के लिए हमे चार प्रश्नों पर विचार करना चाहिए -
1. समस्या क्या है ? 2. समस्या की वज़ह क्या है? 3. समस्या के सभी संभावित साधन क्या है ? 4. समस्या का सर्वोत्तम समाधान क्या है ? ये वे चार प्रश्न हैं, जिन पर चिंतन करने से चिंता को कम या दूर किया जा सकता है। वैसे कई दफ़ा सूर्य भी बादलों से ढंक जाता है। बड़ों को भी कई दफ़ा संकट से गुज़रना पड़ता है। विश्वास रखिए, प्रभु आपके साथ है। कहते हैं ताओ का एक शिष्य था-चुअंगत्सी। एक बार उसकी पत्नी मर गई। हुइत्से मिलने गया। जब वह मिलने गया तो वह गीत भी गा रहा था और अपना बाजा भी बजा रहा था। लोगों ने उससे पूछा-शोक की वेला में यह गाना-बजाना कैसा? हुइत्से ने कहा-ऋतुओं की तरह चोला बदल जाता है। इसमें रोनाधोना कैसा?
जीवन की यह दृष्टि ही शांति और मुक्ति की दृष्टि है। जो हो गया वह होना ही हुआ। होनी में कैसा हस्तक्षेप! हमारी वज़ह से समस्या हुई है तो उसका समाधान कर लो, जो प्रभु-प्रदत्त है, प्रकृति और नियतिकृत है, उसक लिए रोना कैसा? चिंता कैसी? सहज रहो, मस्त रहो।
मुस्कुरा कर जिनको ग़म का यूंट पीना आ गया,
यह हक़ीक़त है, जहां में उनको जीना आ गया। जिनको ग़म का चूंट पीना आता है उनकी छाती हमेशा छत्तीस इंच चौड़ी होती है। मज़बूत दिल के लोग कमज़ोर नहीं होते। उनका आत्मविश्वास बुलंद
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