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यह कसौटी है। संत की कसौटी समता की कसौटी, शांति की कसौटी, सकारात्मकता की कसौटी। जो कसौटी में ख़रा उतरा, वही ख़रा। बाकी सब सान्त्वना पुरस्कार भर है।
चिंतामुक्त जीवन जीने के लिए दूसरी बात है -प्रकृति और परमात्मा की व्यवस्थाओं में विश्वास रखिये। व्यक्ति के किए ही सब कुछ नहीं होता। प्रकृति भी कुछ व्यवस्थाएँ करती है और प्रकृति का धर्म है परिवर्तनशीलता। यहाँ ऋतुएँ बदलती हैं, मौसम बदलते हैं, दिन-रात बदलते हैं, हानि-लाभ बदलते हैं। संयोग-वियोग बदलते हैं, जनम-मरण बदलते हैं। दुनिया में कुछ भी ऐसा नहीं है जो नहीं बदलता। कलकत्ता में एक प्रसिद्ध मंदिर है। वह मंदिर कलकत्ता के दर्शनीय स्थलों में से एक है। उसका निर्माता एक अरबपति व्यक्ति था। उसमें सभी चीजें आयातित वस्तुओं से निर्मित हैं। उसके बारे में कहा जाता है कि जब वह न्यायालय में किसी मकदमे के सिलसिले में जाता तो वकीलों को फीस के बतौर हीरे देता था और कहता अपनी फीस लेकर बाकी बचे हीरे उसके घर पहुँचा देना। आज उसकी पाँचवीं-छठी पीढ़ी के लोग उस मंदिर के फोटो बेचकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। यह सब परिवर्तनशीलता का परिणाम है।
मैंने यह भी देखा है कि जो व्यक्ति प्रतिमाह बमुश्किल पाँच सौ रुपये कमाता था वह आज देश का महान् उद्योगपति है। वह उद्योगपति धीरूभाई अंबानी के नाम से जाना जाता है। जी.डी. बिरला अल्पशिक्षित थे, लेकिन देश के सर्वोच्च उद्योगपति बन गए। जो कल ग़रीब था आज अमीर हो जाता है। प्रकृति सबको देती है और सबका परिवर्तन करती है। इसीलिए प्रकृति और परमात्मा में विश्वास रखिए कि वह वही करता है जो उसे करना होता है। लाभ मिला उसकी कृपा, हानि हो गई उसकी कृपा क्योंकि इसमें भी उसकी कोई-न-कोई व्यवस्था है। हम नहीं जानते प्रभु हमसे क्या चाहते हैं, क्या कहना और क्या करना चाहते हैं? सुख-दुःख दोनों रहते जिसमें, जीवन है वो गाँव।
कभी धूप तो कभी छाँव। कभी सुख तो कभी दुःख! ऊपर वाले के पासों को हम नहीं समझ सकते। हम केवल शिकवा और शिकायते करते रहते हैं। एक बार बादशाह 82
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