Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 62
________________ ज़रा हम अपनी जननी जन्मदात्री को याद करें और पहचानें कि हमारी ओर से माँ के प्रति जितनी त्याग-भावना रही, माँ की ओर से उससे हजार गुना अधिक त्याग-परायणता हमारे प्रति रही। अब तक हम मंदिरों में जाने के आदी रहे हैं, पर हम यह भूल जाते हैं कि हर किसी इन्सान के घर में एक मंदिर है, और वह की ममता का मंदिर । अगर हम पहले माँ की ममता के मंदिर में धोक लगाकर महादेव के मंदिर में जाएंगे तो वहां जाना सार्थक है । अगर माँ के मंदिर की उपेक्षा करके महादेव, महावीर और मोहम्मद की पूजा कर भी लें तो वे उस पूजा को कभी स्वीकार नहीं करेंगे। आपके बुजुर्ग माता-पिता जो कि अपने हाथों से स्नान नहीं कर पा रहे हैं, अगर आपने उनको नहला दिया तो क्या यह दुनियां के किसी रुद्राभिषेक से कम नहीं है ? माँ के चरणों की धूल क्या किसी मन्दिर के चन्दन की चुटकी की तरह नहीं है ? महावीर के मंदिर में जाकर अनुष्ठान करने वाले लोग अपनी माँ के प्रति उनके दायित्वों के अनुष्ठान को क्यों भूल जाते हैं ? माता-पिता के चरणों की धूल को अपने माथे पर लगाने से क्यों कतराते हैं ? माता-पिता के चरणों की रज तो दुनियाँ के किसी भी गुरु और परमात्मा की चरण-रज से ज्यादा असरकारी होती है । जिस किसी के नौ ग्रह बुरे चल रहे हों, वह जाए अपनी माँ के पास और श्रद्धापूर्वक माँ की तीन परिक्रमा लगाकर उनके चरणों की माटी को रोजाना अपने माथे से लगाए। शायद हम किसी औपचारिकता के नाते गुरु के पाँव छूते होंगे, पर अगर माँ के पाँव हम औपचारिकता से भी छू लेंगे, तब भी माँ का कलेजा तो हमें दुआओं से सराबोर कर देगा । जिस किसी बेटे-बहू ने अपने बुजुर्ग दादा-दादी और माता-पिता की सेवा की है, मैं दावे के साथ कहता हूँ कि उस व्यक्ति की आने वाली पीढ़ी फली - फूली है। मान लो तुम्हारे सास-ससुर या माता-पिता गरीब हैं पर अगर तुमने उनकी दिल से सेवा की है तो याद रखना माइतों की सेवा कभी-भी निष्फल नहीं जाती। यह पुण्याई तुम्हारे सात जन्म काम आएगी। वे जीते जी हमें आशीर्वाद देंगे ही, मरकर भी वे देवलोक से हमें आशीर्वादों के अमृत फल देते रहेंगे। निश्चय ही, एक गंगा वह थी जिसे भगीरथ धरती पर लेकर आए थे 61 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use OnlyPage Navigation
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