Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 61
________________ दो मिनट बाद उस आले की लोहे की जाली में से खटखट की आवाज आई। मैंने देखा कि उसमें से गिलहरी ने पहले अपनी पूंछ बाहर निकाली और अपनी पीछे की दोनों टांगें और फिर आगे की दोनों टांगें बाहर निकालीं। फिर उसने अपना चेहरा बाहर निकाला। जब चेहरा बाहर निकला तो मैं चौंक पड़ा कि उस गिलहरी के मुँह में उसका बच्चा था। मैंने सोचा कि यह गिलहरी कहीं गिर न जाए इसलिए मैं झट से चदरिया फैलाकर खड़ा हो गया ताकि गिलहरी या उसका बच्चा अगर गिरे तो सीधा मैं अपनी चदरिया में ले लूं। ___ पर वह बड़ी सावधानी से उल्टे चलते-चलते धीरे-धीरे उस सुरक्षित आले तक पहुँच गई। वहां जाकर उसने अपना बच्चा रखा। तब मुझे राहत महसूस हुई, सुकून मिला। गिलहरी वापस बाहर निकलकर आयी तो मैंने आधी रोटी मंगवाई और उस गिलहरी की तरफ डलवा दी। मगर गिलहरी ने उस रोटी पर ध्यान न दिया। आई, सूंघी और वापस उसी एग्जोस फेन वाले आले में चली गई। फिर एक मिनट में बाहर निकलकर आई। एक बच्चा और उसके मुँह में था। उसको भी उसने सुरक्षित पहुँचाया। तीसरा बच्चा फिर वह निकालकर लाई और उसे भी पहुँचाया। चौथी बार उससे चूक हो गई। चूक यह हुई कि अब तक उसने पूंछ को बाहर निकाला था, पर इस बार उसने बच्चे को लिये हुए पहले मुँह को बाहर निकाल दिया। ___गिलहरी के मुँह बाहर निकालते ही वह बच्चा हिला-डुला, चलायमान हुआ कि बच्चा उसके मुँह से गिरने लगा। गिलहरी जाली के छोटे छेद में से अपने शरीर को बाहर निकालने के लिए संघर्ष कर रही थी। मैंने अपनी चदरिया पूरी तरह से फैला दी कि कहीं कोई चूक न हो जाए। जाली का छेद छोटा था इसलिए गिलहरी उस बच्चे को वापस भीतर नहीं ले सकती थी। गिलहरी संघर्ष करती रही। आख़िर उससे बच्चा छिटकने वाला था, मगर गिलहरी ने बच्चे की पूँछ पकड़ ली। मैंने देखा कि बड़ी जद्दोजहद के बाद आख़िर वह बाहर आने में कामयाब हो गई। उसने चौथे बच्चे को भी सुरक्षित आले में पहुँचाया। फिर वह आई उस रोटी के टुकड़े के लिए ताकि अपने भूखे-प्यासे बच्चों को भोजन दे सके। जब उसने अपने मुँह में रोटी उठाई तो मेरे मुँह से निकल पडा- इसे कहते हैं माँ! गिलहरी जैसे छोटे-से प्राणी के भीतर भी ममता की यह उदात्त भावना! 60/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146