Book Title: Ghar ko Kaise Swarg Banaye
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

Previous | Next

Page 36
________________ प्रेम को जीने के लिए दूसरी बात : स्वधर्मी से प्रेम करो, उनका सहयोग करो। अग्रवाल अग्रवाल बंधुओं के लिए करें । ओसवाल ओसवालों के लिए करें। आप अगर समर्थ हैं तो अपने समाज के ज़रूरतमंद भाइयों को ऊँचा उठाने के लिए सहयोग करें। माथुर जी ने अपने माथुर भाइयों को ऊँचा उठाने के लिए पूरा शास्त्री नगर माथुरों के नाम अलॉट कर दिया । स्वरूप कौन-सा होगा, यह आप जानें, पर अपनी जात वालों के लिए, अपने समाज के लिए, अपने सहधर्मी के लिए अवश्य करें। जैसे : पाठ्य पुस्तकें दो, छात्रवृत्ति दो, ऊँचे स्तर की पढ़ाई करवाओ, अपने समाज में आर.एस., आई.ए.एस. तैयार करो । विधवाओं, वृद्धों के लिए हैल्प करो । प्रेम को जीने को तीसरा चरण है : ग़ैरों से प्रेम करो। उनसे प्रेम करो जिनका दुनिया में कोई नहीं है । जिनसे आपका कोई संबंध या स्वार्थ नहीं है, फिर भी आप उसकी मदद कर रहे हैं, तो यह इंसानियत की सेवा हुई, मानवता की सेवा हुई । मनुष्य होकर मनुष्य के काम आना इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है । किसी के अनजान अपरिचित होने के बावज़ूद भूखे को रोटी खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना यह सबसे बड़ा धर्म है। हमारे अपने ही शहर में एक सज्जन हुए थे - माणकजी संचेती । बड़े अच्छे मार्वलस आदमी । अपने संपन्न सहधर्मी भाइयों से सहयोग लेकर उन लोगों की वे मदद किया करते थे जो विपन्न और अभावग्रस्त थे । प्रतिमाह 700 परिवारों के भरण-पोषण का वे प्रबंध करते थे । सचमुच यह सब दैवीय कार्य है । इसी तरह सुशीला जी बोहरा हैं। देवी महिला हैं । पति गुजर गए : पति का अभाव खलने लगा। दूसरी शादी की नहीं । उन्होंने अपने आपको मानव सेवा के कार्य में लगा दिया। आज वे जोधपुर में 500 नेत्रहीन विद्यार्थियों के भरणपोषण और पढ़ाई-लिखाई की ज़वाबदारी निभा रही हैं । इसी तरह भगवानसिंह जी परिहार लवकुश आश्रम के माध्यम से अनाथ बच्चों को पाल रहे हैं, संत पुरुष हैं। आशुलाल जी वडेरा आस्था के जरिये प्रतिदिन 2 हजार मरीजों के लिए भोजन का प्रबंध करते थे, राजकुमार जी भंडारी 'दिव्य लोक' के जरिए विधवा माताओं के लिए संबल बने हुए हैं। इनके नाम मैं इसलिए ले रहा हूँ ताकि आप भी प्रेरणा ले सकें और यथाशक्ति आप भी इंसानियत के पुजारी बन सकें। लायन्स क्लब, रोटरी क्लब, महावीर इंटरनेशनल, भारत विकास परिषद Jain Education International For Personal & Private Use Only 35 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146