Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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द्वितीयः प्रबन्धः
गत्वा तमभ्येत्य सुरेन्द्रलीलं महाबलं भोगसुखातिलोलम्। उदग्रसौधाग्रगतं सुशीलं ददर्श मन्त्रिः प्रतिबोधनार्थम् ।। २ कुमतिसचिववगैः कर्दमे पातितं तैः सुरुचिरमणिपीठे स्थापितं स्वं त्वया वै। विगतकिरणदीपं स्वप्नके वीक्ष्य राजा गतदिनपरयामे' वर्तते त्वां विलोकी ॥३ मन्दप्रभाभासितदीपदृष्टर्मासावशिष्टायुरभून्नरेन्द्रः। श्रीतीर्थदेवो भविता तमेत्य संबोधयेति व्रतिपो जगाद ॥ ४ *श्रितरमणीस्तनमण्डलं नवकुण्डलं विततललितनवमालाम् । त्यज मम देव नृप राजाधिप त्यज मम देव नृप ॥ १ ॥ध्रुवपदम् । घनमणिमण्डलमण्डनं सुखखण्डनं जनपदनिजजनरञ्जनम् ।
१) M सुखादिलोलं। २) परयामे = चरमयामे । ३) M विलोके। ४) AS गूर्जरी रागे; B रागगुज्जरि-अष्टक; M रागभैरवि ॥
ताळ-त्रिवुडे । ५) B लुलित for ललित ।
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