Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गीतवीतरागप्रबन्धः
व्यैहरदतिसुरभिभरितवसन्ते
नर्तनसक्तजनेन समं निजत्रिरहिसुरस्य दुरन्ते ॥ १ ॥
ध्रुवपदम् ।
उन्नतमदनमनोहर विहरवधूजनजनित विलापे 'सन्नतमधुकर सुमसमवाय निराकुलबकुलकलापे । व्यवहरदतिसुरभिभरितवसन्ते
नर्तनसक्तजनेन समं निजविरहिसुरस्य दुरन्ते ॥ २ ॥
द्विरदसमूह सुमृगमदनिभगुणसुषमतमाल कमाले स्मरवश चितविभेदनमदननखरसमकिंशुकजालें ।
४
व्यहरदतिसुरभिभरितवसन्ते
नर्तनसक्तजनेन समं निजविरहिसुरस्य दुरन्ते ।। ३ ।। मनसिज परिवृढ है मगदानिभचम्पकपुष्पविकासे विनतेन्दिन्दिरपाट लिवि सरकृतातनु तूणविभासे । व्यहरदतिसुरभिभरितवसन्ते
नर्तनसक्तजनेन समं निजविरहिसुरस्य दुरन्ते ॥ ४ ॥ रतिपतिभूपतिचामरत तिनिभवि दलितकुसुमरसाले अति सुरभीकृतदिग्वनिता मुखमलयज पङक्तिविशाले ।
३ ) S व्यवहदघति ।
४) M-reading कलापे ।
५) सुमम् = पुष्पम् ।
६ ) B भेदनमन्मथस खिसम ।
७) हैम-गदा- निभ ।
८) कृत-अतनु-तूण |
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