Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गीतवीतरागप्रबन्धः धरति विकम्पितलोचनजलवहमानननलिनमधीरं सरसिज मिव नलिनी रजनीपिहितहिमनिकरजलधारम् । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ।। *५॥ वहति विलसदतिविरहदहनभरश्यामलमुखमविकाशं तुहिनकिरणमुपरागपिहितमिव क्षणदा' विगतविभासम् । तव विरहे सामुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ॥५॥ स्वपति सुकिसलयविरचितशयने मृदुविन्यस्तशरीरा स्वपति विरहदुःखसहनविशक्तवाग्निनिविष्टाधीरा । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ॥६॥ अभिमतगीतमणितुमतिसौन्दरपरिवादनीमादाय नभसि शशिनमभिवीक्ष्य जहासीद्वीणामेणभयाय । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ॥७॥ अनुदिनमपि तव पतिता पावनमृदुतरपादसरोजे मनसिजनिभभवदमलगुणौघं ध्यायति हृदयपयोजे । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ।। *८||
५) क्षणदा = रात्रिः । ६) निविष्टा + अधोरा ।
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