Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वादशः प्रवन्धः तपोबलादार्जितपुण्य कस्य शरीरमाभादतिसौन्दरं तत् ।। २ सुरतरुसुरभिभरितकुसमवरमालिका परमसुरगिरिशिखरनिभमकुटमौलिका। भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ॥ *१॥ ध्रुवपदम् । परमशभतरुजनितफलसदृशमञ्जला ssभरणनिकरकिरणसमूहबहुलोज्ज्वला। भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ॥ २ ॥ सर भिभरघृतकुमुमितसुरतरुभासिताsमरवृषभसुषमशुभलक्षणविभासिता ।। भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ॥ २३ ॥ अलिकुलकसममलिनकुन्तलविभाजिता अलिमिलितनलिननिभनयनमुखराजिता । भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ॥ ४ ॥ खरकिरणशशिकरनिभकर्णकुण्डला शरदमलघनसदृशवरहारमण्डला । भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ॥ ५ ॥ कटककेयूरभूषितबाहुयुगलालिता घटितलसदंशकाञ्चितजघनलोलिता। भाति हेममयधरणतनूघृणिजालिका ।। *६॥ २) A गुंडक्रिय रागे। यति ताले; B राग-दर्बार; S गुंडक्रि रागे । ३) B विधृत for धरण । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119