Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 95
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीautवरागप्रबन्धः * विशररुचिघृतसांध्य कान्तिसरणे इह कष्टनशन यौवनसुभरणे । दुरनुरागं मा कलय देहिन् || २ | विकसवनकुसुमसमनाशशीले इह कष्टविकलितशुभातिलोले ॥ दुरनुरागं मा कलय देहिन् ॥ ३ ॥ तनयपरिजननिचयबन्धमूले इह कष्टघनदुरितघोरजाले । द्रग्नुरागं मा कलय देहिन् || ४ || मरणवनचरनिकर भीमगहने इह कष्टजरणवनदावदहने । दुरनुरागं मा कलय देहिन् ॥ ५ ॥ स्वरचितसुरकृत बहुदुःखभरिते इह कष्टनरकगतिविपुलदुरिते । दुरनुरागं मा कलय देहिन् ॥ ६ ॥ चर्मकुलभरितपृथुपूतिसदने इह कष्टधर्महतधूर्त मदने । दुरनुरागं मा कलय देद्दिन् || ७ || स्त्रीतनुजम लिनसुखमिलितवासे इह कष्टजात निज कुशलनाशे । दुरनुरागं मा कलय देहिन् ।। ८ ।। ४) विशर = नाशशील । For Private And Personal Use Only

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