Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पञ्चदशः प्रबन्धः
वर्तुलकान्तिमृदूरुभरेण चित्तजबाणधिवृत्तिधरेण । सा वनिता सुविराजिता सुभगा वनितासु विराजिता ॥ २ ॥ मञ्जुलकाञ्चीवेषचयेन पुञ्जितकान्तसुमध्यशुभेन । सा वनिता सुविराजिता सुभगा वनितासु विराजिता ॥ ३ ॥ नलिनसुबिसनिभभुजयुगलेन दलितसुरतरुविटपचलेन । सा वनिता सुविराजिता सुभगा वनितासु विराजिता ॥४॥ विचलितहारविलास शिवेन 'कुचयुगविलसदुरोविभवेन । सा वनिता सुविराजिता । सुभगा वनितासु विराजिता ॥ ५॥ शशधररुचिधरसुषममुखेन विशदकुमुददलनयनसखेन । सा वनिता सुविराजिता सुभगा वनितासु विराजिता॥ ६ ॥ अलिकुलकुन्तलभरनिटिलेन विलसितशशिदलसमकुटिलेन । सा वनिता सुविराजिता सुभगा वनितासु विराजिता ॥ ७ ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119