Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशमः प्रबन्धः निजगुरुपदपद्मं प्रेक्षमाणो मनोब्धे दुरितजयजमोक्षस्थानसंन्यस्तचित्तः। विमलतरसुदृष्टिं भावयन् जीवितान्ते समजनि सुरलोके श्रीधरो देववयेः॥६॥ इति श्रीमदमिनवचारुकीर्तिपण्डिताचार्यवर्यस्य कृतौ गीतवीतरागे भार्यस्य गुरुगुणस्मरणवर्णनो नाम नवमः प्रबन्धः ॥ ९ ॥ [१०] ईशानकल्पे सुखदादनल्पे स श्रीधरः श्रीप्रभकाभ्रयाने। सुप्तोत्थितं वेत्यभिवीक्ष्यमाणं सुराः समीक्ष्याहुरुदारवाणीम् ॥ १॥ शुभसुरलोके प्रभरितलोके शुभतरपुण्यविपाक अभिमतशोभ प्रभुतमलाभ प्रमुदितविश्वसुनाक । सुकलय देव प्रकटसुभाव स्मरसमरूपविभार सुखपदजात सरसविनीत सरभसकार्यमुदार || १||ध्रुवपदम् १) सुखदात् + अनल्पे २) A अष्टपद । देशवराळे रागे; B राग-मोहन; M राग-केतारि गौळ; S राग देशवगळि । ३) M शुभकर। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119