Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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दशमः प्रबन्धः निजगुरुपदपद्मं प्रेक्षमाणो मनोब्धे दुरितजयजमोक्षस्थानसंन्यस्तचित्तः। विमलतरसुदृष्टिं भावयन् जीवितान्ते समजनि सुरलोके श्रीधरो देववयेः॥६॥ इति श्रीमदमिनवचारुकीर्तिपण्डिताचार्यवर्यस्य कृतौ गीतवीतरागे भार्यस्य गुरुगुणस्मरणवर्णनो
नाम नवमः प्रबन्धः ॥ ९ ॥
[१०] ईशानकल्पे सुखदादनल्पे स श्रीधरः श्रीप्रभकाभ्रयाने। सुप्तोत्थितं वेत्यभिवीक्ष्यमाणं सुराः समीक्ष्याहुरुदारवाणीम् ॥ १॥ शुभसुरलोके प्रभरितलोके शुभतरपुण्यविपाक अभिमतशोभ प्रभुतमलाभ प्रमुदितविश्वसुनाक । सुकलय देव प्रकटसुभाव स्मरसमरूपविभार सुखपदजात सरसविनीत सरभसकार्यमुदार || १||ध्रुवपदम्
१) सुखदात् + अनल्पे २) A अष्टपद । देशवराळे रागे; B राग-मोहन; M राग-केतारि गौळ;
S राग देशवगळि । ३) M शुभकर।
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