Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गीतवीतरागप्रबन्धः 'वलितगलनधूमौ प्रापतुर्मृत्युमेतौ मुनिपकशिपुदन्त्या प्राप्नुतां भोगभूमिम् ॥ ७ इति श्रीमदभिनवचारुको तिपण्डिताचार्य वर्यस्य कृतौ गीतवीतरागे श्रीमतीविरहवर्णनो नाम सप्तमः प्रबन्धः ॥ ७ ॥ [ ८ ] मेरोरुत्तरदिक्स्थिते कुरुवरक्षेत्रे सुभोगाकरे जायेते स्म हि दम्पती सुरसमौ बालार्कचञ्चत्प्रभौ । केयूरप्रमुखोद्धभूषणधरौ सुव्यक्तवाग्भूषण पूर्वोपार्जित पुण्य पाकजनितान्भोगानभुक्तां सदा ।। १ वरमणिविसरणकिरणविशाले ' सुररमणीयकवनघनजाले राजित आर्य राजितो राजितो विषये वरधीधरः ।। १ ।। सुरुचिरमणिखनिविनिगतमाने मरकतततिधरदवनिविताने । राजित आर्य राजितो राजितो विषये वरधीधरः ॥ २ ॥ ८ ) B विगत for वलित । १) A अष्टपद । कंनडगीळरागे; B राग- वसंत; H राग-देश क्षि; S कंनडगौलिरागे । For Private And Personal Use Only

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