Book Title: Geet Vitrag prabandh
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तमः प्रबन्धः [७] तत्रव चैत्यालयपट्टशालामध्यासितं विभ्रममानसं तम् । व्योमावतीर्ण विव वनजङ्घ सा पण्डितापीत्थमुवाच वाणीम् ॥१ कुण्डलिमण्डलमण्डितविषमिव दण्डयतीह समोरं चण्डयते ऽखण्डमण्डलविधुमित्र पिण्डितचन्दनसारम् । तव विरहे सा मुग्धा भूमिपे तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिवि चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ।।१।। संततविरचितसुमनशरादिव तव शरणे सुविलोलं स्वान्तजमर्मणि वर्म तनोति स शरशरजच्छदजालम् । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ।। *२॥ अमितसुमनशररचितसुतल्पं लास्यकलाकमनीयं यममिव तव सुखमनुभवनाय तनोति सुमनशयनीयम् । तव विरहे सा मुग्धा भूमिप तव विरहे सा मुग्धा भूमिप कामकलम्बदरादिव चिन्तनया त्वयि स्निग्धा ।। *३॥ १) A गूर्जरे रागे; B राग कावेरी; M राग पंतुवराळि; अथ गुर्जरि रागे यति ताळे । २) AMS भूप for भूमिप । ३) कलम्बदरात् = बाणभयात् । शरशरजं-बाणकमलम् । For Private And Personal Use Only

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